भोपाल। मध्य प्रदेश में कुल 13 सरकारी विश्वविद्यालय संचालित हैं। सन 2014 में इनमें से कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने प्रोफेसर भर्ती प्रक्रिया की पॉलिसी का विरोध कर दिया था। नतीजा तब से अब तक सरकार ने भर्ती ही नहीं होने दी। हर साल प्रोफेसर रिटायर होते जा रहे हैं और 73% पद खाली हो गए हैं। कितनी चौंकाने वाली बात है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रोफेसर ही नहीं है और मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मध्य प्रदेश के युवा पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन करें।
मध्य प्रदेश प्रोफ़ेसर भर्ती- 2014 में क्या हुआ था
मध्य प्रदेश की सरकार विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 में संशोधन करना चाहती थी। जुलाई 2014 में विधेयक तैयार हो चुका था। इसके तहत विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर की भर्ती, उनके ट्रांसफर और प्रतिनियुक्ति के अधिकार सरकार के पास चले जाने वाले थे। इस प्रकार विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों पर सरकार का कंट्रोल हो जाने वाला था। कुछ कुलपतियों ने इस संशोधन का विरोध किया और विधेयक अटक गया।
सरकार के गुस्से का नतीजा देखिए
बदले में सरकार ने विश्वविद्यालयों में एक भी प्रोफेसर की भर्ती नहीं होने दी। तब से लेकर अब तक सरकार इतने गुस्से में हैं कि, मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा का सिस्टम ही चौपट हो गया। 1942 स्वीकृत पद हैं और इनमें से 1428 पद खाली हैं। मात्र 514 प्रोफेसर कार्यरत हैं जो भविष्य में रिटायर हो जाएंगे।
कुलपतियों के सामूहिक समर्पण की तैयारी
उच्च शिक्षा विभाग के सूत्रों ने बताया कि, सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने घुटने टेक दिए हैं और सामूहिक समर्पण के लिए एक मीटिंग का आयोजन किया जा रहा है जिसमें संकल्प लिया जाएगा कि कोई भी कुलपति विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के संशोधन में अड़ंगा नहीं लगाएगा। उसके बाद अधिनियम में संशोधन किया जाएगा और मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से प्रोफेसर भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों के अनुसार सभी रिक्त पदों पर एक साथ भर्ती नहीं कर सकते इसलिए भर्ती की प्रक्रिया कई सालों तक चलती रहेगी।
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