भोपाल। मध्य प्रदेश के रीवा जिले के जिला शिक्षा अधिकारी श्री के पी तिवारी और विकासखंड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी श्री नीरज नयन तिवारी के खिलाफ राज्य सूचना आयोग द्वारा कार्रवाई की गई है। दोनों अधिकारियों पर 10-10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है और स्पष्ट कर दिया गया है सभी प्रकार के प्राइवेट स्कूलों की मान्यता संबंधी जानकारी, सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों की सभी प्रकार की जानकारी और सरकार से रियायती दरों पर जमीन प्राप्त करने वाले प्राइवेट स्कूलों की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत प्रदान की जाएगी।
प्राइवेट स्कूल की जानकारी RTI के दायरे में क्यों जरूरी है
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने स्पष्ट किया कि प्राइवेट स्कूल की जानकारी आम जनता की पहुंच में आने से अवैध तरीके से चल रहे प्राइवेट स्कूलों पर अंकुश लगेगा और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही भी तय होगी। सिंह ने कहा कि "आम नागरिकों और अभिभावकों को यह जानने का हक है कि उनके बच्चे जिस प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं वे शासन द्वारा निर्धारित कानून के तहत संचालित हो रहे हैं या नहीं। शासन-प्रशासन में उपलब्ध प्राइवेट स्कूलों के मान्यता संबंधी दस्तावेजों की पारदर्शिता के मापदंड के अनुरूप आम आदमी को उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि प्राइवेट स्कूल को संचालित करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था में कसावट सुनिश्चित हो सके।"
सूचना आयुक्त ने कहा कि जानकारी आम जनता तक पहुंचने से शिक्षा विभाग का ही काम आसान होगा क्योंकि अगर कोई स्कूल नियम अनुरूप नहीं चल रहा है और उसकी जानकारी आरटीआई के तहत आम जनता तक पहुंचती है तो ऐसी स्तिथि में गलत तरीकों से चल रहे प्राइवेट स्कूलों की जवाबदेही सुनिश्चित होगी। जब नियमों को तोड़कर चल रहे स्कूलों की शिकायत तथ्यों के साथ आम जनता शिक्षा विभाग के समक्ष लाती है तो एक तरीके से आम जनता विभाग की मंशा के अनुरूप ही कार्य करते हुए गलत तरीके से चल रहे स्कूलों विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करवाने का काम भी करती हैं।
शिक्षा विभाग, प्राइवेट स्कूल की जानकारी नहीं रोक सकता है
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में प्राइवेट स्कूलों को लेकर शिक्षा विभाग की भूमिका को रेगुलेटरी अथॉरिटी के रूप करार देते हुए कहा कि शिक्षा विभाग, प्राइवेट स्कूल के तीसरे पक्ष होने के आधार पर जानकारी को रोक नहीं सकते हैं। सिंह ने कहा कि "सभी प्राइवेट स्कूल शासन-प्रशासन के नियम एवं कानून के अनुरूप संचालित होते हैं। शासन की भूमिका यहां एक रेगुलेटर अथॉरिटी के रूप में है जिसका काम यह सुनिश्चित करना है कि यह प्राइवेट स्कूल नियमों के तहत संचालित होते हुए बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराएं। शिक्षा विभाग यहां रेगुलेटरी अथॉरिटी होने के नाते प्राइवेट स्कूलों से मान्यता संबंधी शर्तों के पूर्ण होने पर ही स्कूलों को संचालित करने की अनुमति प्रदान करता है।" रेगुलेटरी अथॉरिटी होने के नाते शिक्षा विभाग का उद्देश्य गैर कानूनी रूप से संचालित निजी स्कूलों के व्यवसायिक हितों की रक्षा करने का नहीं हो सकता है बल्कि यह देखने का है कि नियम और कानून के तहत निजी स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बच्चों को उपलब्ध कराएं।
प्राइवेट स्कूल की जानकारी 30 दिन में देने के निर्देश
सिंह ने कहा कि ये स्पष्ट है कि मान्यता संबंधी जानकारी सरल एवं सुलभ स्वरूप में शिक्षा विभाग के पहुंच में हैं। कोई भी आम आदमी अगर आरटीआई दायर करके निजी स्कूलों की मान्यता संबंधी जानकारी मांगता है तो शिक्षा विभाग के लोक सूचना अधिकारियों को धारा 7 (1) के तहत 30 दिन के अंदर आरटीआई आवेदक को जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए। यहां आयोग यह भी स्पष्ट करता है कि प्राइवेट स्कूलों की अन्य जानकारी जो समानत: और विशेष तौर पर भी शासन प्रशासन को उपलब्ध नहीं कराई जाती है वैसी जानकारियां आरटीआई के अधीन नहीं है। निजी स्कूलों के संबंध में मांगी गई मान्यता संबंधी जानकारी समानत: नियम अनुरूप शिक्षा विभाग के पास ही उपलब्ध होती है। यहां तीसरे पक्ष निजी स्कूलों की सहमति असहमति का प्रश्न ही नहीं उठता है क्योंकि मांगी गई जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (i) के तहत रिकॉर्ड एवं धारा 2 (f) के तहत सूचना की श्रेणी में आती है जो कि पूरी तरह से शासन के नियंत्रण में है।
सिंह ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (f) से स्पष्ट है प्राइवेट निकाय की सूचना भी लोक प्राधिकारी प्राप्त कर सकते हैं। धारा 2 (f) के तहत सूचना से आशय है कि किसी प्राइवेट निकाय से संबंधित ऐसी सूचना सहित जिस तक किसी अन्य विधि के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहुंच में हो सकती है उसे प्राप्त कर संबंधित को प्रदान किया जाना चाहिए।
निजी स्कूलों से भी शिक्षा विभाग ले सकता है जानकारी
सूचना आयुक्त ने साफ़ किया कि अगर मान्यता की जानकारी किसी कारण से विभाग मे उपलब्ध नहीं है तो शिक्षा विभाग के पास रेगुलेटरी अथॉरिटी होने के नाते पर्याप्त अधिकार हैं जिसके तहत जो जानकारी शासन के पास प्राइवेट स्कूलों की नियमों के अनुरूप प्राप्त होनी चाहिए अगर वह जानकारी कोई भी प्राइवेट स्कूल देने से मना करें तो विभाग स्कूल के RTE Act 2009 एवं RTE rules 2011 के तहत प्राइवेट स्कूलों के विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई कर जानकारी ले सकते हैं।
शासन से अनुदान लेने वाले निजी स्कूल पूरी तरह RTI के अधीन
आयुक्त राहुल सिंह ने आदेश में कहा कि अगर किसी प्राइवेट स्कूल को किसी भी तरह का अनुदान शासन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त है जैसे सब्सिडाइज रेट पर जमीन उपलब्ध कराई गई हो तो वह स्कूल सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2(h) (i) और (ii) के तहत लोक प्राधिकारी की श्रेणी में है। मध्य प्रदेश शासन के नियम अनुरूप उस प्राइवेट स्कूल के ऊपर सूचना का अधिकार अधिनियम पूरी तरह से लागू होगा। सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश सूचना का अधिकार (फीस तथा अपील) नियम, 2005 अधिसूचना क्रमांक F-11-37-05-1-9 दिनांक 10/10/2005 के अध्याय 1 के 2 (ज) में प्रयाप्तत: वित्त पोषित के मुताबिक किसी संस्था में वार्षिक टर्नओवर का 50% या रुपये 50,000 जो भी कम हो शासन या उनकी किसी संस्था से अनुदान के रूप में यह या अन्यथा वित्त रूप से पोषित होने से है। इस तरह से किसी यूनिवर्सिटी में शासन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ₹50000 अनुदान मिला है तो वो RTI के दायरे मे आ जायेगा।
इस प्रकरण में हुई थी आयोग में सुनवाई
रीवा के एक RTI आवेदक ने जानकारी वहा एक निजी स्कूल की मान्यता संबंधी जानकारी मांगी थी जिसे जिला शिक्षा अधिकारी ने कार्रवाई के लिए विकास खंड शिक्षा अधिकारी के पास भेज दिया पर विकास खंड अधिकारी ने यह कहते हुए जानकारी उपलब्ध नहीं कराई कि निजी स्कूल ने आरटीआई अधिनियम के अधीन ना होने से जानकारी देने से मना कर दिया है। बाद में प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा जानकारी देने के आदेश जारी किए तो जिला शिक्षा अधिकारी ने अपने स्तर पर से आधी अधूरी जानकारी उपलब्ध कराई। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सुनवाई के बाद जानकारी को उपलब्ध न कराने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी रीवा केपी तिवारी और विकास खंड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी नीरज नयन तिवारी प्रत्येक पर ₹10000 - ₹10000 का जुर्माना लगा दिया।
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