भोपाल। मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम करीला धाम में भगवान श्री राम के पुत्र लव एवं कुश का जन्मोत्सव प्रारंभ हो गया है। पवित्र गुफा के द्वार 24 घंटे के लिए खोल दिए गए हैं। पहाड़ी पर हजारों अप्सराओं ने राई नृत्य प्रारंभ कर दिया है। अगले 3 दिन तक यह उत्सव चलेगा और लगभग 20 लाख लोग इस उत्सव में शामिल होंगे। स्थानीय स्तर पर इसे करीला मेला कहते हैं।
भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश का जन्म कहां पर हुआ था
रावण का वध करने के बाद अयोध्या के राजा बने भगवान श्रीराम ने जब आम नागरिक के मन में उपजे संदेह को दूर करने के लिए माता सीता का त्याग कर दिया था तब माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम करीला धाम में निवास किया था। यहीं पर लव एवं कुश का जन्म हुआ। यह रंग पंचमी का दिन था। कहते हैं कि श्रीराम पुत्र लव-कुश का जन्मोत्सव देवताओं द्वारा मनाया गया था। अप्सराओं ने यहां पर 3 दिन तक नृत्य किया और दिन रात लगातार उत्सव मनाया जाता रहा। यह स्थान मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित है। आज भी इस आश्रम को करीला धाम कहा जाता है। यहां पर प्राचीन माता का मंदिर (मां जानकी धाम) है। यहां पर माता सीता, लव एवं कुश की प्रतिमाएं हैं। महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा भी है लेकिन भगवान श्री राम की प्रतिमा नहीं है। यह पूरी पृथ्वी पर अकेला ऐसा मंदिर है जहां माता सीता के साथ प्रभु श्रीराम नहीं है।
राई नृत्य कौन करता है और क्यों किया जाता है
तभी से यह परंपरा चली आ रही है। रंग पंचमी के अवसर पर भगवान श्री राम के पुत्र लव एवं कुश का जन्मोत्सव प्रारंभ हो जाता है। हजारों नृत्यांगनाएं अपनी श्रद्धा और भक्ति के चलते करीला पर्वत पर अप्सरा बनकर आती हैं और राई नृत्य का प्रदर्शन करती हैं। तभी से परंपरा चली आ रही है, बुंदेलखंड में संतान के जन्म और विवाह के अवसर पर माता-बहनें और मौसियां राई नृत्य करती हैं। यह समारोह दिन और रात लगातार 72 घंटे तक चलता है। अंत में 'घेरा की राई' नृत्य होता है। इसमें सभी नृत्यांगनाएं पूरे पर्वत को घेर लेती हैं और नृत्य करती हैं। इस प्रदर्शन के साथ लव और कुश के जन्मोत्सव का समापन होता है।
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