harigitika chhand ka udaharan and paribhasha
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
श्रीरामचरितमानस में श्रीरामस्तुति का यह छंद भारत के करोड़ों लोगों को याद है, लेकिन सभी लोग यह नहीं जानते कि हरिगीतिका का सबसे बढ़िया उदाहरण है।
हरिगीतिका की परिभाषा
यह चार चरण वाला एक सममात्रिक छंद, हरिगीतिका है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती है और अंत में लघु (।) और गुरु(ऽ)होता है तथा 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है। यानी कि प्रत्येक चरण के खत्म होने पर आखिर में एक छोटी और बड़ी मात्रा आती है।
छंद को पिंगल भी कहा जाता है। छंद काव्य सौन्दर्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। छंद में मात्राओं और वर्णों की विशेष व्यवस्था तथा संगीतात्मक लय और गति की योजना रहती है।छंद का सर्वप्रथम विवरण ऋग्वेद से मिलता है। जिस प्रकार व्याकरण गद्य का महत्वपूर्ण भाग है। उसी प्रकार छंदशास्त्र, पद्य का महत्वपूर्ण भाग है।
हरिगीतिका शब्द की विशेषता
हरिगीतिका छंद का नाम है परंतु इसकी विशेषता है कि यदि इसे लगातार 4 लिखा जाए तो इसमें भी 28 मात्राएं होती है।
हरिगीतिका-॥ऽ।ऽ + हरिगीतिका-॥ऽ।ऽ + हरिगीतिका-॥ऽ।ऽ + हरिगीतिका-॥ऽ।ऽ
या
हरिगीतिका-॥ऽ।ऽ X 4 = 28
॥ऽ।ऽ (7) X 4 = 28
।- छोटा या लघु
ऽ- बड़ा या दीर्घ
एक बार हरिगीतिका लिखने में 7 मात्राएं तो 4 बार हरिगीतिका लिखने पर कुल 28 मात्राएं होंगी।
हरिगीतिका का अर्थ सरल हिंदी में
बात सिर्फ इतनी सी है कि यदि आप कोई महाकाव्य लिख रहे हैं तो उसमें छंद का होना अनिवार्य है। नहीं तो उसे लिखा तो जा सकता है परंतु गाने में प्रॉब्लम होगी। लोग बोर हो जाएंगे और बीच में ही आपका महाकाव्य बंद करके चले जाएंगे। श्रीरामचरितमानस से आप केवल भगवान श्री राम के आदर्श ही नहीं सीख सकते बल्कि यह भी सीख सकते हैं कि, एक महाकाव्य करोड़ों लोगों को हजारों साल तक श्री राम की भक्ति के आनंद में बनाए रखता है। जरा सोचिए, कितनी आश्चर्य की बात है कि गोस्वामी तुलसीदास जी के बाद और उनसे पहले भी, लाखों लोगों ने श्री राम की कथा का वर्णन लिखा है जो आनंद श्री रामचरितमानस के पाठ में है वह किसी और किताब में कभी नहीं मिलता।
हरिगीतिका के 3 प्रमुख उदाहरण
मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा ।
नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः ।
स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,
अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥
उदाहरण-2
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन, हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम ॥
कंदर्प अगणित अमित छवि नव, नील नीरज सुन्दरम ।
पट्पीत मानहु तडित रुचि शुचि, नौमि जनक सुतावरम ॥
उदाहरण-3
प्रभु गोद जिसकी वह यशोमति, दे रहे हरि मान हैं ।
गोपाल बैठे आधुनिक रथ, पर सहित सम्मान हैं ॥
मुरली अधर धर श्याम सुन्दर, जब लगाते तान हैं ।
सुनकर मधुर धुन भावना में, बह रहे रसखान हैं॥
इसमें निम्न प्रश्नों के उत्तर उपलब्ध हैं
- हरिगीतिका छंद का उदाहरण।
- हरिगीतिका छंद की परिभाषा।
- हरिगीतिका छंद में कितनी मात्राएं होती हैं।
- हरिगीतिका छंद के लक्षण।
- हरिगीतिका छंद का सरल उदाहरण।
- हरिगीतिका छंद क्या है।
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