भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कलेक्ट्रेट की स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल हो गई है। जनसुनवाई में जनता की सुनवाई नहीं हो रही। नतीजा पब्लिक पैनिक कर रही है। अधिकारियों ने सुनवाई के लिए कर्मचारियों को तैनात किया है। अब कर्मचारियों ने अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस फोर्स की मांग की है। कितना अजीब है, हाथ में आवेदन लिए किसी दुखी और पीड़ित व्यक्ति से लाट साहब के लोगों को खतरा है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आम आदमी की परेशानियों के समाधान के लिए रास्ते बहुत कम है। सीएम हेल्पलाइन से भी भोपाल के नागरिकों को हेल्प नहीं मिलती। जबकि राजधानी होने के कारण सीएम हेल्पलाइन के मामले में भोपाल को नंबर वन होना चाहिए। जनसुनवाई में शासन के निर्देश है कि, कलेक्टर सहित सभी विभागों के प्रमुख अधिकारी एक ही स्थान पर उपस्थित होंगे और शिकायतकर्ता की शिकायत का तत्काल निराकरण किया जाएगा। भोपाल में ऐसा बिल्कुल नहीं होता। कलेक्टर के पास टाइम नहीं है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया परंतु अधिकारियों के पास भी टाइम नहीं है।
जनसुनवाई में कई बार तृतीय श्रेणी के कर्मचारी शिकायतों की सुनवाई के लिए बैठते हैं। यह बताने की जरूरत नहीं की आईएएस, राज्य प्रशासनिक सेवा और तृतीय श्रेणी कर्मचारी में क्या अंतर होता है। यदि कलेक्टर का काम क्लर्क कर सकता है तो फिर कलेक्टर की जरूरत क्या है। स्वाभाविक है कर्मचारी खानापूर्ति करते हैं और पब्लिक पैनिक कर जाती है।
अब देखना यह है कि इस मामले में मुख्यमंत्री का कार्यालय क्या करता है। जनता की सुनवाई के लिए अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाती है या फिर कर्मचारियों की मांग पूरी करते हुए परेशान पीड़ितों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए पुलिस फोर्स तैनात की जाती है।
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