पढ़िए हनुमान जी ने ऐसा क्यों कहा- प्रात लेइ जो नाम हमारा, तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा - GK Today

Bhopal Samachar
श्री रामचरितमानस में एक चौपाई है जिसमे हनुमान जी कहते हैं कि 'प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।' अर्थात प्रातः काल जो व्यक्ति हमारा नाम ले लेता है, उसी दिन भर भोजन नहीं मिलता। हम सभी जानते हैं कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से संकट कट जाते हैं, शनि के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है, फिर क्या कारण था कि हनुमान जी ने स्वयं अपने बारे में ऐसा कहा। आइए जानते हैं कि क्या सचमुच ऐसा होता है:- 

प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा का सही हिंदी भावार्थ

दरअसल यह रावण की लंका में विभीषण और हनुमान की पहली मुलाकात के समय हुई बातचीत के बीच की एक लाइन है। प्रारंभिक वार्ता के बाद विभीषण अचानक दुखी हो गए। उन्होंने कहा कि मैं तो जन्म से ही अभागा हूं। राक्षस कुल में जन्म लिया है। मेरा शरीर राक्षसों के जैसा है। उस समय श्री राम भक्त हनुमान ने भक्ति मार्ग पर बनाए रखने के लिए कहा कि, मैं भी तो वानर हूं। मैं कौन सा कुलीन हूं। लोग तो यह भी कहते हैं कि, प्रातः काल यदि वह हमारा नाम भी ले ले तो उनको दिन भर भोजन नहीं मिलता, लेकिन मैं किसी की बात से या अपने शरीर से विचलित नहीं होता। प्रभु की भक्ति में लगा रहता हूं और राम काज को सफल बनाना ही एकमात्र लक्ष्य है। 

इस प्रकार उन्होंने विभीषण को मोटिवेट किया कि, अपने भीतर मौजूद कमियों की तरह ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है बल्कि अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। हम जानते हैं कि हमारे भीतर वह सामर्थ है कि हम प्रभु श्रीराम के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसी स्थिति में हमें अपनी भूमिका और अपने कार्य पर ध्यान देना चाहिए। 

MORAL OF THE STORY

कुल मिलाकर पूरी रामायण में से यदि किसी एक लाइन को अलग करके उसका अर्थ निकालने का प्रयास करेंगे तो अनर्थ होने की संभावना बढ़ जाएगी। यह फार्मूला केवल श्रीरामचरितमानस के लिए नहीं है बल्कि प्रत्येक शास्त्र, पुस्तक यहां तक की अभिभाषण पर भी यही फार्मूला लागू होता है। हमला करने आ रहे किसी हिंसक जानवर से मासूम बच्चे को बचाने हेतु अपने सैनिक को आदेश देते हुए जोर से "बचाओ" चिल्लाने वाले राजा को इसलिए कायर नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसने सिर्फ "बचाओ" बोला। यह नहीं कहा जा सकता कि उसे पूरा वाक्य 'हे सैनिक वहां खड़े हुए उस मासूम बच्चे को उसकी तरफ बढ़ रहे हिंसक जानवर से बचाओ' कहना चाहिए था। शायद अब स्पष्ट हो गया होगा कि प्रातः काल हनुमान चालीसा का पाठ करने से ना केवल भरपेट भोजन मिलता है बल्कि हजारों भूखे लोगों को भोजन कराने का आत्मबल भी मिलता है। 

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