ग्वालियर। माधवीराजे, प्रियदर्शनी राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कमला राजे चैरिटेबल ट्रस्ट का आवेदन अपर सत्र न्यायालय में खारिज कर दिया है। यह आवेदन स्थगन के लिए था। सिंधिया के ट्रस्ट ने दावा किया है कि सरकार ने उनकी जमीन पर एजी ऑफिस का पुल बनाकर अतिक्रमण कर लिया। सरकार की तरफ से भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया। 600 करोड़ रुपए के महल में रहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 7.55 करोड़ मुआवजा की मांग करते हुए अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ दावा ठोक दिया है।
सरकारी रिकॉर्ड में यह जमीन कभी सिंधिया के नाम थी ही नहीं
कोर्ट में सरकार की ओर से एडवोकेट श्री धर्मेंद्र शर्मा एवं जगदीश शाक्यवार ने तथ्य एवं तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने न्यायालय को बताया कि, मिसिल बंदोबस्त 1950 के आधार पर जमीन का मालिकाना हक तय होता है। सरकारी रिकॉर्ड में यह जमीन कभी किसी ट्रस्ट के नाम नहीं रही। इस स्थान का नाम महलगांव है लेकिन सर्वे क्रमांक 1071, 1072, 1073 खसरों में शासकीय दर्ज हैं। इलाके का नाम महलगांव होने से पूरी जमीन ट्रस्ट की नहीं हो जाती। मिसिल बंदोबस्त संवत 1997 सर्वे 1071 में 10 बिस्वा जमीन, 1072 में एक बीघा चार विश्वा जमीन, 1073 में चार बीघा जमीन रेल की पटरी, सड़क, बंजर के नाम से दर्ज है।
पढ़िए ज्योतिरादित्य सिंधिया के कमला राजा चैरिटेबल ट्रस्ट की दलील
सिंधिया परिवार ने इस मामले में न्यायालय की कार्यवाही के लिए ट्रस्ट के सचिव विजय सिंह फालके अधिकृत किया है। ट्रस्ट की ओर से कोर्ट में दावा किया गया कि, सरकारी रिकॉर्ड में कुछ भी लिखा हो लेकिन 31 दिसंबर 1971 को विजयराजे सिंधिया द्वारा गठित किए गए कमलाबारी चैरिटेबल ट्रस्ट के दस्तावेजों में यह जमीन विजयाराजे सिंधिया द्वारा ट्रस्ट को दान की गई है। इसलिए यह जमीन हमारी है और हमारी जमीन पर सरकार ने अतिक्रमण कर लिया है। हमें ईजीआफिस पुल का मुआवजा चाहिए और बाकी बची हुई जमीन का आधिपत्य चाहिए।
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