बाजार में ब्रांडेड प्रोडक्शन (जिस कंपनी का कारखाना उसी कंपनी का प्रोडक्ट) के अलावा 2 तरह के प्रोडक्शन और होते हैं। अपने कारखाने में किसी दूसरी कंपनी के लिए प्रोडक्शन करना और अपने कारखाने में बनाए गए प्रोडक्ट पर किसी दूसरी कंपनी का LOGO लगाकर बेचना। यदि किसी कंपनी की अनुमति के बिना अपने प्रोडक्ट पर उसका LOGO लगा दिया जाए तो हर कोई कहेगा कि यह गलत बात है परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि ऐसे लोगों के खिलाफ पुलिस थाने में किस धारा के तहत मामला दर्ज कराया जाता है। आइए हम बताते हैं:-
आईपीसी की धारा 486- गिरफ्तारी, जमानत, सजा एवं समझौता के प्रावधान
अगर कोई व्यक्ति किसी प्रतीक चिन्हों, संपत्ति चिन्हों, पेटी, या पैकेट के चिन्हों का कुटकरण कर लेता है एवं उन कूटरचित चिन्हों का उपयोग करते हुए माल की बिक्री करता है, अथवा विक्रय के लिए प्रदर्शित करता है अथवा विक्रय के लिए संग्रहित करता है, तो यह अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 486 के अंतर्गत होगा।
यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं। आरोपी की गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं होती एवं पुलिस थाने से जमानत की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। इनकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। इस अपराध के लिए एक वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 486 का अपराध एक शमनीय अपराध है जानिए
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा(1) के अनुसार सपत्ति चिन्हों का कूटरचित विक्रय का अपराध एक समझौता योग्य अपराध हैं इसका समझौता बिना न्यायालय की आज्ञा अर्थात न्यायालय के बाहर ही उस व्यक्ति से किया जा सकता है जिस व्यक्ति की या विभाग,कंपनी आदि के चिन्ह का कूटरचित कर विक्रय किया गया है उससे किया जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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