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एक परीक्षार्थी को परीक्षा देने से रोकना, एक खिलाड़ी को प्रतियोगिता में शामिल होने से रोकना, एक पुलिसकर्मी को, अपराधी को गिरफ्तार करने से रोकना, एक शिक्षक को कक्षा में जाने से रोकना, एक कलाकार को मंच पर जाने से रोकना और इस प्रकार के सभी कार्य गलत होते हैं, यह तो हम सभी जानते हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि ऐसे लोगों के खिलाफ पुलिस थाने में मामला भी दर्ज करवाया जा सकता है।
आईपीसी की धारा 357- गिरफ्तारी, जमानत, सजा और समझौता के नियम
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 357 के अंतर्गत ऐसे लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाता है जो एक साजिश के तहत किसी भी व्यक्ति को सफल होने से रोकते हैं। उसका रास्ता बाधित करते हैं। उसे किसी कमरे में बंद कर देते हैं। या फिर किसी भी प्रकार से उसे अपने निर्धारित गंतव्य स्थल तक पहुंचने नहीं देते।
आईपीसी की धारा 357 का अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होता है अर्थात पुलिस थाना अधिकारी ऐसे अपराध की सीधे एफआईआर दर्ज की जाएगी एवं जमानत भी पुलिस थाने से ही ली जा सकती है। गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं होती। इस अपराध की सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। इस अपराध के लिए अधिकतम एक वर्ष की कारावास या एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 337 का अपराध एक शमनीय अपराध है जानिए
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 की उपधारा (2) के अनुसार व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्न में हमला या आपराधिक बल का अपराध समझौता योग्य अपराध है इस अपराध का समझौता न्यायालय की आज्ञा पर या न्यायालय की मंजूरी के उस व्यक्ति से किया जा सकता है जिसको परिरोध करने के लिए उस व्यक्ति हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किया गया है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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