जबलपुर। मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग में विधिवत सेवाएं देने के बाद रिटायर हुए कर्मचारी की याचिका पर, हाईकोर्ट से जारी हुए नोटिस का जवाब नहीं देने के कारण हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश शासन पर ₹5000 का जुर्माना लगा दिया एवं स्वतंत्र किया कि यह रकम जिम्मेदार अधिकारी से वसूल की जाए।
याचिकाकर्ता शिव प्रसाद सैय्याम, मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग में नियमित कर्मचारी था। 30 जून, 2012 में सेवानिवृत्त हुआ। सेवा प्रारंभ से लेकर सेवानिवृत्ति तक याचिकाकर्ता को एक भी क्रमोन्नति या समयमान वेतनमान का लाभ नहीं दिया गया। वर्ष 2015 मे याचिकर्ता ने अभ्यावेदन दिया कि अन्य सहकर्मियों की तरह उसको भी समयमान वेतनमान लाभ दिया जाए। तत्कालीन वन मंडलाधिकारी ने मई 2016 में आदेश जारी कर 2007 से द्वितीय समयमान वेतनमान लाभ देने कहा था। आदेश का पालन होने से पहले उनका ट्रांसफर हो गया। दूसरे डीएफओ ने वह आदेश निरस्त कर दिया। लिहाजा, हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता शहपुरा डिंडोरी निवासी शिव प्रसाद सैय्याम की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह व राम गिरीश वर्मा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने 2018 में याचिका दायर कर द्वितीय क्रमोन्नति समयमान वेतनमान लाभ देने की मांग की थी। शासन ने डीपीसी के बाद सैय्याम को 12 अक्टूबर 2007 को आदेश जारी कर फारेस्टर के पद पर पदोन्नति दी थी। यह पदोन्नति एक अप्रैल 2007 से प्रभावशील थी। उसे निरस्त किया जाना विधि विरुद्ध है।
हाई कोर्ट ने इस मामले में वन विभाग को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा परंतु फारेस्ट डिपार्टमेंट की तरफ से कोई जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने कड़ी फटकार लगाते हुए मध्यप्रदेश शासन पर ₹5000 की कॉस्ट लगा दी। शासन को स्वतंत्र किया है कि वह ₹5000 की वसूली, इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन से समायोजित कर ले। इस मामले में जवाब पेश करने के लिए 20 मार्च 2023 तक का समय दिया गया है।
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