Section 156-3 in The Code Of Criminal Procedure, 1973
ग्वालियर। बिना वारंट, उचित एवं वैधानिक कारण के, रात के समय घर में घुसे 14 पुलिस कर्मचारियों को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने नोटिस जवाब तलब किया है। सभी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 156-3 के तहत कार्रवाई करने के लिए याचिका प्रस्तुत की गई है। याचिकाकर्ता का नाम श्री यतेंद्र सिंह चौधरी और उनके अधिवक्ता का नाम श्री जितेंद्र सिंह राठौर है।सीआरपीसी की धारा 156-3 क्या है - What is Section 156 3 of the CrPC
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 156(3) के अनुसार अगर अपराध संज्ञेय हैं और पुलिस अधिकारी FIR दर्ज नहीं करते है तब पीड़ित व्यक्ति डायरेक्ट न्यायालय में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद दायर कर सकता है। प्राथमिक परीक्षण के बाद कोर्ट, पुलिस को FIR दर्ज करने के लिए आदेश करेगा और तब पुलिस आनाकानी नहीं कर पाएगी।
सीआरपीसी की धारा 156-3 - सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना है कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच का आदेश दे, जब शिकायत प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध को दर्शाती हो और तथ्य पुलिस जांच की आवश्यकता को इंगित करते हों।
8-10 पुलिसकर्मी बिना वर्दी के अचानक घर में घुस आए: याचिकाकर्ता का आरोप
बिरला नगर निवासी यतेन्द्र सिंह चौधरी ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में धारा 452, 364, 364 ए, 365, 367, 368, 395, 397 भादंसं तथा 11 एवं 13 डकैती अधिनियम के तहत विशेष न्यायालय में परिवाद पेश किया था। परिवादी यतेन्द्र चौधरी की ओर से कहा गया कि चार सितंबर 18 को रात 10:21 बजे अपने घर पर खाना खा रहा था। उसके घर में 8-10 लोग सिविल ड्रेस में जबरन घुसकर परिवादी व उसके भाईयों को मारने-पीटने लगे। परिवादी व उसकी पत्नी, उसके पिता गजेन्द्र सिंह उन्हें रोकने व बीच बचाव का प्रयास किया, लेकिन उनके ऊपर रिवाल्वर तान दी। घनश्याम जाट ने सिर पर रिवाल्वर लगा दी। एक व्यक्ति ने परिवादी के पिता गजेन्द्र सिंह को धक्का दे दिया। परिवादी की पत्नी के साथ भी आरोपियों ने धक्का-मुक्की की।
ना FIR, ना गिरफ्तारी वारंट, फिर भी हिरासत में ले लिया, मोबाइल-पर्स छीन लिया
आरोपित उसके भाइयों को घर से बाहर लाकर मारते हुए ले जाने लगे तभी पडौसी ने इन लोगों को पकड़ लिया। एक आरोपित ने परिवादी का पर्स भी छीन लिया। आरोपित उनके मोबाइल तथा जेबों में रखे पैसे भी ले गए। वहीं आरोपित उनकी कार को भी क्राइम ब्रांच थाने में ले गए। यहां परिवादी और उनके भाई की मारपीट की गई। यतेन्द्र को विश्विविद्यालय थाने में बंद कर दिया।
हाईकोर्ट ने ग्वालियर एसपी को निराकरण का समय दिया था
जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो पुलिस ने परिवादी को धारा 151 व आठ सितंबर 2018 को पुष्पेन्द्र व विनय परमार को आबकारी एक्ट में बंद करना बताते हुए न्यायालय में पेश किया गया। परिवादी ने आरोपियों पर कार्रवाई के लिए उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की जिस पर न्यायालय ने एसपी को आवेदन देने और एसपी को 30 दिन में कार्रवाई के निर्देश दिए थे। जब हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ तो यतेंद्र ने अवमानना याचिका दायर की है।
ग्वालियर हाईकोर्ट ने इन पुलिस कर्मचारियों को नोटिस जारी किया
- टीआई जितेन्द्र,
- राजेंद्र बर्मन थाना प्रभारी,
- संजू कामले थाना प्रभारी,
- सुदेश तिवारी थाना प्रभारी,
- आलोक परिहार थाना प्रभारी
- सत्यवीर जाटव एएसआई,
- घनश्याम जाट आरक्षक,
- अनिल राजावत आरक्षक,
- संतोश भदौरिया आरक्षक,
- जितेन्द्र सिंह तोमर आरक्षक,
- लोकेन्द्र राजावत आरक्षक,
- रामसहाय यादव आरक्षक,
- अंजनी चंदेल आरक्षक,
- राहुल यादव आरक्षक,
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