जबलपुर। मध्य प्रदेश में हड़ताल कर रहे वकीलों के लिए महत्वपूर्ण खबर है। रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रदेश के समस्त जिला न्यायालयों को 25 प्रकरण प्रत्येक न्यायाधीश निराकृत करने का लक्ष्य निर्धारित करते हुए जो आदेश जारी किया गया है उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रतिनिधि एवं रिटायर्ड जज श्री राजेंद्र कुमार श्रीवास एवं अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने आज याचिका दाखिल करके इस संदर्भ में जारी हुए तीन आदेशों की संवैधानिक ता को चुनौती दी है।
न्यायालय को कानून बनाने का अधिकार नहीं है: वकीलों का दावा
याचिका मे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी विवादित तीनो आदेशों मे प्रदेश के समस्त जिला न्यायालयो के अंतर्गत कार्यरत सभी न्यायधीशगणों को कठोर निर्देश जारी करके निर्धारित समयसीमा मे 25 प्रकरण निराकृत करने के आदेश जारी किए गए है, जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ए.आर.अंतुले वनाम आर. एस. नायक एवं अन्य, रामचंद्र राव बनाम कर्नाटक राज्य मे सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा स्पष्ट किया गया है कि राइट टू स्पीड ट्रायल पक्षकारों का विधिक अधिकार है, लेकिन किसी भी न्यायालय द्वारा प्रकरण के निराकरण हेतु समय सीमा का निर्धारण नहीं किया जा सकता। ना ही सक्षम न्यायालय को किसी भी न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा में प्रकरण को निराकृत करने के लिए आदेश दिया जा सकता है। यदि इस प्रकार के निर्देश जारी किए जाते हैं तो नागरिकों के अनुच्छेद 21 में संरक्षित मौलिक अधिकार अच्छादित होंगे अर्थात संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत न्यायालय को कानून बनाने का अधिकार नहीं है।
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश भारत के समस्त न्यायालयों पर संविधान के अनुच्छेद 141 तथा 142 के तहत बंधन कारी होते हैं अर्थात मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी विवादित तीनों आदेश चुनौती योग्य हैं। आदेश में ना तो किसी प्रावधान का उल्लेख किया गया है ना ही यह स्पष्ट किया गया है कि श्रीमान रजिस्ट्रार जनरल इस प्रकार का आदेश जारी करने की अधिकारिता रखते हैं।
याचिका में श्रीमान रजिस्ट्रार जनरल के तीनों आदेश निरस्त करने की मांग की गई है। अधिवक्ता श्री रामेश्वर ठाकुर ने कहा कि, इस याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई होने की संभावना है।
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