True motivational story for students in Hindi
ग्वालियर। भारत में जितने भी उम्मीदवार प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं उन सभी के लिए डबरा के पहाड़ सिंह की कहानी अनिवार्य कर देनी चाहिए। यह कहानी उन्हें यह नहीं बताएगी कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कैसे करनी चाहिए परंतु यह याद हमेशा दिलाएगी की प्रतियोगी परीक्षा के दौरान क्या करना चाहिए।
डबरा के पहाड़ सिंह पिछले 1 साल से आर्मी भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। हर सुबह दौड़ लगाने के लिए जाते हैं। गांव का युवक है, पथरीली मिट्टी पर दौड़ता है इसलिए स्पीड भी अच्छी खासी है। पिछले दिनों फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा निकली। पहाड़ सिंह ने भी फॉर्म भर दिया। फिजिकल टेस्ट के लिए उसे खंडवा बुलाया गया। यहां पर 24 किलोमीटर की दौड़ का लक्ष्य दिया गया जिसे 4 घंटे में करना था। यानी 6 किलोमीटर प्रति घंटा जबकि पहाड़ सिंह कम से कम 8 किलोमीटर प्रति घंटा दौड़ता है।
जैसे ही दौड़ शुरू हुई, पहाड़ सिंह फुल स्पीड से दौड़ा। मात्र 3 घंटे में 21 किलोमीटर पहुंच गया, लेकिन डबरा से खंडवा तक की यात्रा और उसके बाद फिजिकल टेस्ट के कारण उसका थक शरीर गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो कोई कैंडिडेट दिखाई नहीं दिया। उसे लगाकर लोगों को आने में बहुत समय लगेगा। थकावट हो रही है थोड़ा आराम कर लेता हूं। सड़क किनारे एक डंपर की छांव में लेट गया।
पहाड़ सिंह की आंख तब खुली जब फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोगों ने उसे जगाया। लोगों ने उसे बताया कि दौड़ पूरी हो चुकी है। गिनती में एक उम्मीदवार कम था इसलिए उसकी तलाश में एक टीम रवाना की गई थी। टीम ने पहाड़ सिंह को रेस्क्यू किया और मेडिकल टेस्ट के बाद घर रवाना कर दिया।
Moral of the story
कुल मिलाकर शानदार प्रदर्शन करने वाला एक उम्मीदवार सिलेक्ट नहीं हो पाया क्योंकि.... इस प्रश्न का उत्तर हर उम्मीदवार को अपने अंदर से निकालना होगा क्योंकि उसे खुद तय करना है कि उसे क्या बनना है। पहाड़ सिंह, दूसरे सिलेक्ट हुए कैंडिडेट जैसा या फिर इन दोनों को मिलाकर कुछ तीसरा।
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