juvenile delinquent- eligible or ineligible for government job
जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में आज एक महत्वपूर्ण प्रकरण में इस बात का निर्धारण हुआ कि 18 वर्ष से कम आयु का (नाबालिग) भारतीय नागरिक अपने क्राइम रिकॉर्ड के कारण सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाएगा या नहीं।
अमित वर्मा विरुद्ध मध्यप्रदेश शासन (पुलिस भर्ती-हाई कोर्ट)
मध्य प्रदेश पुलिस भर्ती 2020 की भर्ती प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है एवं सिलेक्टेड कैंडीडेट्स का पुलिस वेरिफिकेशन और पोस्टिंग का काम चल रहा है। अनुप्रमाणन फार्म के कॉलम नंबर 12 में अभ्यर्थियों को अपने क्राइम रिकॉर्ड की डिटेल्स देनी होती है। छिंदवाड़ा के रहने वाले श्री अमित वर्मा द्वारा बाल्यावस्था (18 वर्ष से कम आयु) में किए गए अपराध का उल्लेख कर दिया। यह भी बताया गया कि अपराध स्वीकार करने पर मात्र 800 जुर्माना लगाकर उसे मुक्त कर दिया गया। इस जानकारी के आधार पर एडीजीपी चयन भोपाल द्वारा पुलिस अधीक्षक बालाघाट को निर्देशित किया गया एवं कैंडिडेट को अयोग्य घोषित कर दिया गया।
उम्मीदवार श्री अमित वर्मा द्वारा इस आदेश के विरुद्ध मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की गई। उनकी ओर से अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने याचिका क्रमांक WP 8004/2023 के माध्यम से अमित वर्मा को अयोग्य ठहराए जाने वाले आदेश की संवैधानिकता को चुनौती दी गई।
जूविनाइल जस्टिस केयर एवं प्रोटक्शन आफ चिल्ड्रन एक्ट 2015 की धारा 3
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा कोर्ट को बताया गया कि, बच्चों के संरक्षण हेतु विधायिका द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 (3), 21(a), 45, 47, 39(e) एवं 39(f) में विशेष उपबंध किए गए है तथा विधायिका द्वारा जूविनाइल जस्टिस केयर एवं प्रोटक्शन आफ चिल्ड्रन एक्ट 2015 की धारा 3 में स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया है कि वयस्कता अर्थात 18 वर्ष की आयु के पूर्व किसी भी प्रकार के अपराध किए जाने पर, वयस्कता प्राप्त करने पर यह माना जाएगा कि, उसने पूर्व में कोई अपराध नहीं किया है और ना ही कहीं पर अवयस्कता की आयु में किए गए अपराध का उल्लेख किया जाएगा।
LAW CASES- यूनियन आफ इंडिया बनाम रमेश बिश्नोई
ठीक इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा "यूनियन आफ इंडिया बनाम रमेश बिश्नोई" के प्रकरण मे, मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं, कि वयस्कता में किए गए अपराध के आधार पर अभ्यार्थी को शासकीय सेवा के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है।
अधिवक्ता श्री रमेश सिंह ठाकुर के तर्कों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट की सिंगल बेंच द्वारा उक्त याचिका को निराकृत करते हुए एडीजी (चयन) तथा पुलिस अधीक्षक बालाघाट को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए मार्गदर्शी सिद्धांतों के तहत याचिकाकर्ता के प्रकरण का परीक्षण करके 30 दिवस के अंदर समुचित आदेश प्रसारित किया जाए।
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