Amazing facts in Hindi about cheating history and story
भारत के इतिहास में हजारों ठग हुए परंतु नटवरलाल नाम अमर हो गया। भारत में आज भी नटवरलाल का मतलब ठग और ठग का मतलब नटवरलाल माना जाता है। सब जानते हैं कि नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश श्रीवास्तव था परंतु क्या आप जानते हैं कि उसने ठगी कहां से सीखी और अपनी जिंदगी की पहली ठगी की वारदात कहां पर की थी।
उत्तर प्रदेश का एक गांव जहां का मुख्य व्यवसाय ठगी था
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की चकरनगर तहसील का एक गांव सिंडौस, इतिहास से ज्यादा पुलिस थानों के रजिस्टर में दर्ज है क्योंकि यह एक ऐसा गांव था जिस का मुख्य व्यवसाय ठगी था। यहां के लोग देश के कोने कोने में ठगी करने के लिए जाया करते थे। यह लोग ठगी को अपराध नहीं बल्कि एक कला मानते थे। उनकी दलील थी कि चोरी और डकैती अपराध है परंतु ठगी बुद्धिमानी है, एक प्रकार का व्यवसाय है।
भारत के सबसे कुख्यात ठग अंग्रेजो के खिलाफ क्रांतिकारियों की मदद करते थे
यह भी अपने आप में ऐतिहासिक है कि भारत के सबसे कुख्यात ठग अंग्रेजो के खिलाफ क्रांतिकारियों की मदद किया करते थे। उन दिनों राजा रूप सिंह और राजा निरंजन सिंह चंबल के बीहड़ों में अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे। सिंडौस के ठगों ने ना केवल उन तक अंग्रेजों की सूचनाएं पहुंचाई बल्कि उनके लिए चंबल में हथियार और भोजन सामग्री भी उपलब्ध कराई एवं खुलेआम अपने गांव में क्रांतिकारी सैनिकों को शरण दी।
सिंडौस के ठगों को अंग्रेज क्यों नहीं पकड़ते थे
सिंडौस के ठगों की बुद्धि का खौफ इतना ज्यादा था कि सब कुछ जानते हुए भी अंग्रेज अधिकारी ना तो उनके गांव में तलाशी लेने जाते थे और ना ही उन्हें पूछताछ के लिए बुलाते थे। अंग्रेजों को डर रहता था कि कहीं अपनी किसी तरकीब से सिंडौस के ठग उनसे कोई ऐसा डिसीजन ना करवा लें जो उनके लिए उल्टा पड़ जाए और कंपनी सरकार नाराज होकर उनका तबादला भारत के बाहर किसी दूसरे देश में कर दे।
नटवरलाल ने अपनी जिंदगी की पहली वारदात कहां की
मिथिलेश श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल ने उत्तर प्रदेश के सिंडौस गांव में ही ठगी का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद पहली ठगी करने के लिए नटवरलाल अपने कई साथियों के साथ ग्वालियर गया। यहां उसने एक ऐसे सर्राफा कारोबारी को ठगी का शिकार बनाया जो स्वर्ण एवं आभूषणों का अवैध व्यापार किया करता था। जिसके कारण उसने कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं की। ठगी की दुनिया में इसे सबसे सफल प्रदर्शन माना जाता है जब ठगी का शिकार व्यक्ति कानूनी कार्रवाई भी ना कर पाए।
सिंडौस के ठगों का सिद्धांत
सिंडौस के ठगों का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत था कि वह कभी भी किसी निर्धन व्यक्ति, जरूरतमंद अथवा परेशान व्यक्ति को अपनी ठगी का शिकार नहीं बनाते थे बल्कि किसी धनवान व्यक्ति को ऐसे समय पर ठगी का शिकार बनाते थे जब वह अपनी बौद्धिक क्षमता का पूरा उपयोग करने की स्थिति में होता था। इसीलिए सिंडौस के ठग इसे धोखाधड़ी नहीं मानते थे बल्कि एक बौद्धिक प्रतिस्पर्धा मानते थे जिसमें जीतने वाले को लाभ होता था और हारने वाला स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता था।
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