reason behind saying touchwood
टचवुड तो आपने भी कई बार कहा होगा। जब कोई अच्छी बात होती है, किसी मनोकामना के बारे में चर्चा होती है, कोई ऐसी बात होती है जब आप चाहते हैं कि इसे किसी की नजर ना लगे तो टचवुड बोलते हुए किसी लकड़ी को छू लिया जाता है। सवाल यह है कि, ऐसा क्यों किया जाता है। टचवुड ही क्यों कहा जाता है। इसका मीनिंग क्या होता है और यह परंपरा कब से शुरू हुई। आइए पता लगाते हैं:-Why do we say touchwood, Why we knock on wood for luck
दुनिया की किसी भी धर्म शास्त्र में टचवुड बोलने या लकड़ी को छूने के बारे में कोई मार्गदर्शन नहीं दिया गया है। कोई कथा अथवा किवदंती भी नहीं मिलती, जिसमें यह दावा किया जाता हो कि टचवुड बोलने या लकड़ी को छूने से वह मनोकामना पूरी हो गई है अथवा किसी की नजर नहीं लगी लेकिन फिर भी पूरी दुनिया में इसका प्रयोग किया जाता है। दरअसल, एक मान्यता है कि, लकड़ी को छूने से ईश्वर यह मानता है कि आप होली क्रॉस को छू रहे हैं और ऐसी स्थिति में ईश्वर आपकी मनोकामना पूरी करता है। आपकी रक्षा करता है।
टचवुड बोलते हुए लकड़ी को छूने की परंपरा कहां से शुरू हुई
जैसा कि ऊपर बताया गया कि किसी भी धर्म शास्त्र में इसका उल्लेख नहीं है और ना ही किसी धर्मगुरु ने इस परंपरा को शुरू किया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में 19वीं शताब्दी से पहले यह शब्द नहीं मिलता था। थोड़ा रिसर्च करने पर पता चला कि 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश बच्चे एक खेल खेलते थे जिसका नाम था Tiggy-touch-wood. भारत में भी यह खेल खेला जाता है। मध्य भारत में इसे लकड़ी पकड़ अथवा लोहा पकड़ कहते हैं। इस खेल में जो खिलाड़ी लकड़ी को छू लेता है, वह सुरक्षित हो जाता है। आउट नहीं होता और विभिन्न लकड़ियों को छूते हुए बच्चे अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ते हैं। वह तभी आउट होते हैं जब उनका प्रतियोगी उन्हें उस समय टच करें जब उन्होंने किसी लकड़ी को टच नहीं किया हुआ है।
इसी खेल से टचवुड की मान्यता प्रारंभ हुई। जिस प्रकार लकड़ी को छूने से खिलाड़ी बच्चा सुरक्षित हो जाता है और अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ता है। मान्यता है कि उसी प्रकार टचवुड कहते हुए लकड़ी को छूने से भगवान आपको सुरक्षित कर देते हैं और आपको आपके लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने में मदद करते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article.
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