Contractor sanctions and fines, Latest decision of Supreme Court
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भोपाल मध्य प्रदेश की श्रीमती संध्या मिश्रा बनाम मध्यप्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि, बिना नोटिस और सुनवाई के किसी भी ठेकेदार पर एकतरफा प्रतिबंध और दंड लगाने की कार्रवाई को मंजूरी नहीं दी जा सकती। इसी के साथ ठेकेदार श्रीमती संध्या मिश्रा Isolators and Isolators, Bhopal पर लगाए गए प्रतिबंध और दंड के सभी आदेश रद्द कर दिया जाए।
श्रीमती संध्या मिश्रा बनाम मध्यप्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी
मध्यप्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी (MPMKVVCL) द्वारा Isolators & Isolators, Bhopal (Manufacture and Supplier of Distribution Transformer) को ट्रांसफार्मर के लिए एक टेंडर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में बिजनेस फर्म की प्रोपराइटर श्रीमती संध्या मिश्रा की ओर से अपील प्रस्तुत की गई। उन्होंने बताया कि MPMKVVCL द्वारा डिसटीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर की आपूर्ति के लिए एक परचेज ऑर्डर जारी किया गया था लेकिन यह आर्डर उन्हें 75 दिन देरी से प्राप्त हुआ। इसलिए उन्होंने डिलीवरी की तारीख बदलने का अनुरोध किया।
ना नोटिस ना सुनवाई, ठेकेदार के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई कर डाली
श्रीमती संध्या मिश्रा ने बताया कि उनके अनुरोध के बावजूद डिलीवरी की तारीख में कोई संशोधन नहीं किया गया और आपूर्ति में देरी करने के आरोप में उनके बिलों पर दंड लगा दिया गया। इसके बाद बिजली कंपनी ने टेंडर स्थगित कर दिया और बाद में रद्द कर दिया गया। सिर्फ इतना ही नहीं श्रीमती संध्या मिश्रा की बिजनेस फर्म Isolators & Isolators को बिजली कंपनी में अगले 3 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया। बिजली कंपनी में आपूर्ति ना किए गए ट्रांसफार्मर के लिए जुर्माना लगा दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध और दंड दोनों आदेश रद्द कर दिए
इससे पीड़ित होकर श्रीमती संध्या मिश्रा ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में बिजली कंपनी के आदेश एवं प्रतिबंध को चुनौती दी लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद श्रीमती संध्या मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील प्रस्तुत की। सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्याय थी जस्टिस दिनेश माहेश्वरी एवं जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने अपीलकर्ता के अधिवक्ता की दलीलों से सहमत होते हुए कहा कि, इस प्रस्तावित कार्रवाई के संबंध में अपीलकर्ता को नोटिस जुर्माना लगाने की कार्रवाई को मंजूरी नहीं दी जा सकती। इसी के साथ बिजली कंपनी की ओर से जारी प्रतिबंधात्मक आदेश और दंड आदेश एवं मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
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