Difference between doubt and evidence, Supreme Court's decision
बहुत से मामले पुलिस थाना अधिकारी कहा-सुनी, शक, संदेह के आधार पर दर्ज कर लेते हैं और बहुत से अपराध पुलिस अधिकारी किसी नेता या राजनीति दबाब में आकर दर्ज कर लेते हैं और पुलिस अधिकारी भी कहा-सुनी एवं संदेह के आधार पर पुलिस रिपोर्ट बनाकर न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष भेज देते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि संदेह, शक कितना भी ठोस क्यों न हो साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता है जानिए।
ओडिशा राज्य बनाम बनविहारी मोहपात्रा (निर्णय वर्ष 2021):-
उपरोक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि संदेह कभी सबूत की जगह नहीं ले सकता, चाहे वह कितना ही मजबूत क्यों न हो। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि संदेह से परे दोषी साबित होने तक किसी भी आरोपित को निर्दोष माना जाता है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी कहा कि किसी भी आरोपित के खिलाफ सबूतों की कड़ी इतनी पूर्ण होनी चाहिए कि उसके खिलाफ आरोप को साबित किया जा सके।
शक के आधार पर FIR दर्ज कर सकते हैं लेकिन सजा नहीं दे सकते
उपरोक्त मामलों से स्पष्ट होता है कि शक के आधार पर प्रकरण दर्ज किया जा सकता है लेकिन यदि इन्वेस्टिगेशन में साक्ष्य प्राप्त नहीं होते और स्पष्ट हो जाता है कि लगाया गया आरोप, आधारहीन है तब पुलिस को क्लोजर रिपोर्ट पेश करनी चाहिए। इससे न्यायालय का भी समय बचेगा और लोगों का पुलिस पर विश्वास बढ़ेगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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