Sick employee, departmental enquiry, termination, high Court order
भारत की जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने उस कर्मचारी को बर्खास्त किए जाने का आदेश रद्द कर दिया, जिसकी गंभीर बीमारी की स्थिति में विभागीय जांच की गई और उसे कर्तव्य पर अनुपस्थित बताकर बर्खास्त कर दिया गया।
सीआरपीएफ कर्मचारी मोहम्मद अशरफ शाह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
याचिकाकर्ता कर्मचारी मोहम्मद अशरफ शाह ने उच्च न्यायालय को बताया कि वह सीआरपीएफ में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत था। उसने 5 साल तक वेदांत सेवा की और उसके खिलाफ कभी कोई शिकायत या कार्यवाही नहीं हुई थी। याचिकाकर्ता ने बताया कि वह एन्सेफलाइटिस सिक्वेला नामक बीमारी से पीड़ित था। इस बीमारी में व्यक्ति का उसके शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता। इसके कारण व अस्पताल में भर्ती था और 39 दिनों तक इलाज के दौरान वह अपने कर्तव्य पर उपस्थित नहीं हो पाया।
सीआरपीएफ ने बिना आवेदन एवं अनुमति के उसकी अनुपस्थिति को अनुशासनहीनता माना। उसके खिलाफ विभागीय जांच की गई। याचिकाकर्ता का कहना है कि जांच के दौरान जांच अधिकारी को पता चल गया था कि वह गंभीर रूप से बीमार है परंतु जांच रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं किया गया। गंभीर बीमारी के कारण उसकी अनुपस्थिति को अनुशासनहीनता माना गया और उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
विद्वान न्यायाधीश जस्टिस वसीम सादिक नर्गल द्वारा दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि, अनुशासनात्मक प्राधिकरण यह साबित करने में विफल रहा है कि कर्मचारी जानबूझकर अपने कर्तव्य से अनुपस्थित हो गया था। अनुपस्थिति के कारण को समझना अनिवार्य है। बिना अनुमति के कर्मचारी की प्रत्येक अनुपस्थिति, अनुशासनहीनता नहीं मानी जा सकती। इसे कदाचार की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता। विद्वान न्यायाधीश ने कर्मचारी की सेवा समाप्ति का आदेश रद्द कर दिया।
कर्मचारी की बिना अनुमति अनुपस्थिति से संबंधित, सुप्रीम कोर्ट LAW CASES
इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृष्णकांत बी परमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, 2012(3) SCC 178 मामले में दिए गए फैसले का उल्लेख किया गया। जिसमें कहा गया है कि,
"किसी भी आवेदन या पूर्व अनुमति के बिना कर्तव्य से अनुपस्थिति अनधिकृत अनुपस्थिति हो सकती है, लेकिन इसका मतलब हमेशा जानबूझकर नहीं होता है। बीमारी, दुर्घटना, अस्पताल में भर्ती आदि जैसी कई विवश करने वाली परिस्थितियों हो सकती हैं, जिनसे कर्मचारी कर्तव्य से दूर हो सकता है, लेकिन ऐसे मामले में कर्मचारी को कर्तव्य के प्रति समर्पण की विफलता या अनुचित व्यवहार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।"
विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में इस बात का भी उल्लेख किया है कि कर्मचारी के खिलाफ हुई विभागीय जांच में कर्मचारी को उसका पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। जांच अधिकारी ने, कर्मचारी के बयान दर्ज नहीं किए। जोकि सीआरपीएफ नियमों के नियम 27(सी) का उल्लंघन है।
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