कोविड-19 महामारी का तीसरा वेरिएंट जिसे ओमिक्रॉन के नाम से जाना जाता है, किसी लैब में नहीं बल्कि चूहा, खरगोश, गिलहरी अथवा इस प्रकार के कुतरने वाले जीव जंतु, जानवर इत्यादि से पैदा हुआ था। यह खुलासा भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के बाद किया गया। रिसर्च रिपोर्ट करंट साइंस नाम की शोध पत्रिका में प्रकाशित की गई है।
अध्ययन में कितनी संस्थाएं शामिल थी
वैज्ञानिकों का मानना है कि रिवर्स ज़ूनोसिस, कृन्तक आबादी में प्रसार, और बाद में ज़ूनोसिस के रूप में फैलने से संभवतः ओमिक्रॉन वायरस के चिंताजनक स्वरूप का विकास हुआ। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर; थिरुमलाई मिशन अस्पताल, रानीपेट, तमिलनाडु; और अपोलो अस्पताल, नवी मुंबई के शोधकर्ताओं के अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।
पूर्व अध्ययनों में, SARS-CoV-2 वायरस के ओमिक्रॉन संस्करण के पशु प्रजातियों से मनुष्यों में पहुँचने का अनुमान लगाया गया था। इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं द्वारा ओमिक्रॉन वेरिएंट की संभावित उत्पत्ति के लिए दो परिकल्पनाएं पेश की गई हैं। पहली परिकल्पना के अनुसार, ओमिक्रॉन वेरिएंट की संभावित उत्पत्ति के लिए लंबे समय तक SARS-CoV-2 संक्रमण से ग्रस्त कमजोर प्रतिरक्षा वाले व्यक्तियों में होने वाले उत्परिवर्तन को जिम्मेदार माना गया है।
दूसरी परिकल्पना में, पशु प्रजातियों में रिवर्स ज़ूनोसिस को जिम्मेदार बताया जा रहा है, जिसमें कोई बीमारी मनुष्यों से जंतुओं में फैलती है, जो जंतुओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा करती है। शोधकर्ताओं ने पशु प्रजातियों में रिवर्स ज़ूनोसिस संक्रमण, अनुकूलित उत्परिवर्तन के साथ उस पशु प्रजाति में एनज़ूटिक (स्थानिक पशु महामारी) प्रसार, और जंतु-जनित रोग (ज़ूनोसिस) के रूप में मनुष्यों तक इस वायरस के पहुँचने का अनुमान लगाया है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि ये दोनों स्थितियाँ ओमिक्रॉन के विकास के पीछे जिम्मेदार हो सकती हैं। लेकिन, बाद वाली स्थिति के कारण कोरोनावायरस के ओमिक्रॉन संस्करण के उभरने की संभावना अधिक थी। शोधकर्ताओं ने एक अन्य अध्ययन के आधार पर पहली परिकल्पना को खारिज किया है, जिसमें 7-9 महीनों की अवधि में तीन एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों में संक्रमण के दौरान वायरस के अल्फा संस्करण के स्पाइक प्रोटीन के आरबीडी क्षेत्र में केवल 2-3 नये रूपांतरण (म्यूटेशन) पाए गए।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, आरबीडी क्षेत्र में दो साल से कम समय में SARS-CoV-2 संक्रमण से ग्रस्त कमजोर प्रतिरक्षा वाले संक्रमित व्यक्तियों में करीब 15 रूपांतरण संभव नहीं थे। दूसरी परिकल्पना को लेकर शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका समर्थन करने वाले अन्य अध्ययनों पर आधारित प्रमाण मौजूद हैं। हालाँकि, जहाँ वायरस के ‘रिवर्स जूनोसिस’ और ‘एनजूटिक ट्रांसमिशन’ के लिए पर्याप्त प्रमाण थे, तो वहीं इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका है कि कृतन्क जीव वायरस से कैसे संक्रमित हो सकते हैं।
यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में टी. जैकब जॉन, धन्या धर्मपालन और मंडलम एस. शेषाद्री शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर) ✔ इसी प्रकार की जानकारियों और समाचार के लिए कृपया यहां क्लिक करके हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें एवं यहां क्लिक करके हमारा टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करें। यहां क्लिक करके व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन कर सकते हैं। क्योंकि भोपाल समाचार के टेलीग्राम चैनल - व्हाट्सएप ग्रुप पर कुछ स्पेशल भी होता है।