Section 494 indian Penal Code in Hindi
भारत के कानून में तलाक का प्रावधान जरूर है परंतु यह प्रावधान महिला अथवा पुरुष के तलाक के अधिकार का संरक्षण नहीं बल्कि विवाह के संरक्षण का प्रयास करता है। यही कारण है कि न्यायालय द्वारा जब तक तलाक की डिक्री पारित नहीं की जाती तब तक पति अथवा पत्नी दोनों में से कोई भी दूसरा विवाह नहीं कर सकता। आइए जानते हैं कि यदि कोई मनुष्य इसका उल्लंघन करता है और दूसरी शादी कर लेता है, तब उसके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी।
हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत बिना तलाक दूसरी शादी
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 कहता है की पति या पत्नी पहली शादी वैध होते हुए अगर दूसरा विवाह कर लेता है तो दूसरा विवाह अवैध होगा अर्थात शून्य होगा अर्थात दूसरी पत्नी को कानूनी तौर पर पत्नी का दर्जा नहीं मिलेगा, कानूनी पहचान नहीं मिलेगी, उत्तराधिकार नहीं मिलेगा। यानी महिला करवा चौथ का व्रत तो रख सकेगी परंतु यदि पति की मृत्यु हो गई तो उसकी संपत्ति में उसे कोई अधिकार नहीं मिलेगा।
आईपीसी की धारा 494 के तहत दूसरा विवाह एक अपराध
सिर्फ इतना ही नहीं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 494 कहती है कि अगर कोई पति या पत्नी बिना तलाक के या पहली शादी वैध होते हुए अपने जीवन काल मे दूसरी शादी या पुनः विवाह कर लेता है या कर लेती हैं तब यह एक अपराध होगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बिना तलाक दूसरा विवाह
लेकिन मुस्लिम विधि अर्थात मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत मुस्लिम पुरुष चार पत्नी तक रख सकता है बिना तलाक के, परन्तु मुस्लिम महिला बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं कर सकती है। अगर मुस्लिम महिला पुनः विवाह करती है तो यह आईपीसी की धारा 494 के अंतर्गत अपराध होगा।
नोट :- आईपीसी की धारा 494 हिन्दू अर्थात बुद्ध, जैन, पारसी, ईसाई के प्रति भी लागू होती है।
IPC की धारा 494- गिरफ्तारी, जमानत, सजा एवं राजीनामा के नियम
आईपीसी की धारा 494 का अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होता है अर्थात पुलिस थाना अधिकारी ऐसे अपराध की तुरंत एनसीआर (crpc धारा 155 के निर्देशानुसार) दर्ज करेगा एवं जमानत भी पुलिस थाने से ही ली जा सकती है। इस अपराध की सुनवाई प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है, इस अपराध के लिए अधिकतम सात वर्ष की कारावास और जुर्माना, दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494 का अपराध एक शमनीय अपराध है जानिए
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 की उपधारा (2) के अनुसार पति या पत्नी द्वारा पुनः विवाह का अपराध समझौता योग्य अपराध है इस अपराध का समझौता न्यायालय की आज्ञा पर अर्थात न्यायालय की मंजूरी के उस व्यक्ति से किया जा सकता है जो या तो पत्नी हो या पति हो उसका। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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