CrPC Section 320(6) Definition in Hindi
कई बार ऐसा होता है कि कोई सभ्य नागरिक आवेश में आकर या किसी अन्य कारण से कोई सा मान्यता प्राप्त कर बैठता है। इसके लिए वह गिल्टी फील करता है और माफी मांगता है परंतु पीड़ित व्यक्ति उसे माफ नहीं करता। क्या ऐसी स्थिति में कोई कोर्ट पीड़ित व्यक्ति की सहमति के बिना दोनों पक्षों में राजीनामा करवा कर अपराधी को सजा से मुक्त कर सकता है।
CrPC- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320(6) की परिभाषा
हाईकोर्ट एवं सेशन कोर्ट को दण्ड प्रक्रिया संहिता 397 एक 401 के अंतर्गत यह शक्ति प्राप्त है कि वह किसी अन्य में चल रहे मामलों का पुनः निरीक्षण कर सके एवं फाइल को मंगा कर उस पर विचार कर सके। अगर उपरोक्त न्यायालय को किसी शमनीय अपराध में लगता है की अपराध बहुत ही कम गंभीर पृवत्ति का है ओर ऐसे अपराध में अपराधी को सजा देने से उसको भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। उसके परिवार के सामने जीवन यापन का संकट उपस्थित हो सकता है। तब न्यायालय अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए आरोपी का समझौता करवा सकता है इसमें पीड़ित पक्षकार एवं अन्य न्यायालय की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
अपराधी को तो सजा मिलनी चाहिए, राहत का प्रावधान क्यों किया
यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। समाज का एक वर्ग मानता है कि यदि अपराध किया है तो दंड मिलना ही चाहिए परंतु भारतवर्ष एक राष्ट्र के रूप में राष्ट्र के सभी अंगो का मूल कर्तव्य है कि सभ्य समाज की स्थापना बनी रहे। यदि अपराध गंभीर नहीं है, अपराधी क्षमा मांग रहा है, इस बात पर विश्वास करने के पर्याप्त कारण है कि वह आदतन अपराधी नहीं है और भविष्य में किसी भी प्रकार का अपराध नहीं करना चाहता है और उसे दंडित करने से परिस्थितियां गंभीर हो सकती हैं। तब ऐसी स्थिति में भारत का कानून कहता है कि उसे अवसर दिया जाना चाहिए। क्योंकि कानून, समाज को सभ्य बनाने के लिए बनाए गए हैं। यही तो लोकतंत्र है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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