भारतीय दण्ड संहिता,1860 के अध्याय 12 में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति सिक्को, टकसाल, या सरकारी स्टाम्पों का कूटरचित या कुटकरण करता है तब उससे संबंधित घटित होगा। एवं भारतीय दण्ड संहिता,1860 के अध्याय 17 में चोरी, लूट, डैकती, छल, भय, रिष्टि, आपराधिक न्यायसभंग, आपराधिक अतिचार, गृह अतिचार आदि अपराधों के बारे में बताया गया है। अगर कोई व्यक्ति आईपीसी के अध्याय 12 एवं अध्याय 17 के अंतर्गत एक बार दोषसिद्ध होने के बाद दोबारा इन्ही अपराध को करता है तब इसे आरोपी व्यक्ति का मामला किस न्यायालय को सौंपा जाएगा जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 324 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दो में):-
कोई व्यक्ति जो भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध में दोषसिद्ध किया जा चुका है एवं इन्ही अपराध में वह पुनः आरोपी है तब ऐसे व्यक्ति का मामला पुनः अपराध के आरोप के विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय को सुपुर्द किया जाएगा अर्थात सौपा जाएगा।
साधारण शब्दों मे रहें तो चोरी के अपराध का मामला किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जाता है। अगर व्यक्ति दोबारा चोरी का अपराध करता है और वह आरोपी होता है तब उसके अपराध का विचारण मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायलय द्वारा सुना जाएगा न कि अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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