किसी व्यक्ति पर चोरी का मामला दर्ज है और अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जा रहा है ऐसे में मजिस्ट्रेट को ऐसे साक्ष्य मिल जाते हैं जिससे यह भी प्रतीत होता है कि चोरी करने वाले चोर ने रास्ते में भागते समय कुछ लोगो को गंभीर चोट भी पहुचाई थी तब मामला प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जाना चाहिए क्योंकि चोरी के अपराध (आईपीसी की धारा 379) में अधिकतम तीन वर्ष की कारावास के दण्ड का प्रावधान है ओर चोरी करके भागते समय मृत्यु या उपहति करने के अपराध(आईपीसी की धारा 382) में अधिकतम 10 वर्षों का कठोर दण्ड का प्रावधान है ऐसे में अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कठोर दण्ड देने के लिए पर्याप्त नहीं होगा तब मामला किसको सौपा जाएगा जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 325 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में)
1. जब कभी मजिस्ट्रेट को पीड़ित पक्षकार एवं आरोपी के साक्ष्य को सुनने के बाद लगता है कि आरोपी कठोर दण्ड या भिन्न प्रकार का दण्ड से दण्डित किया जाना है एवं मजिस्ट्रेट कठोर दण्ड या अधिक दण्ड देने की शक्ति नहीं रखता है तब वह मामले को उसी न्यायालय के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेज देगा।
2. अगर आरोपी एक से अधिक है और सभी का विचारण के साथ किया जा रहा है तब मजिस्ट्रेट सभी आरोपियों को जो उनकी राय में दोषी है, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेज देगा।
3. अगर अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जिसके पास कार्यवाही भेजी जाती है अगर उसको लगता है कि मामले का फिर से विचारण किया जाना आवश्यक है तो वह साक्षियों की पुनः परीक्षा करवा सकता है या पुनः साक्ष्य मंगवा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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