डॉ मोहन यादव, भारतीय जनता पार्टी के प्रतिष्ठित नेता है, विधानसभा क्रमांक 217 उज्जैन दक्षिण से विधायक है, किसान हैं, वकील हैं, व्यापारी हैं, लेकिन इन सबके अलावा मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा मंत्री भी हैं। यहां बतौर उच्च शिक्षा मंत्री उनका रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत कर रहे हैं। आप खुद पढ़िए कि, जिस प्रकार बीएसएनल और मध्य प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को सरकारी साजिश के तहत ध्वस्त किया गया था ठीक उसी प्रकार मध्य प्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था को धूल चटा दी गई है। फैकल्टी के मात्र 1535 पद स्वीकृत हैं जिन्हें बढ़ाया जाना चाहिए था परंतु इनमें से मात्र 407 पर फैकल्टी नियुक्त हैं शेष 1128 पद खाली हैं। यानी मात्र 27% पद भरे हुए हैं और 73% पद खाली हैं।
मध्य प्रदेश की किस यूनिवर्सिटी में कितने पद रिक्त हैं
मध्य प्रदेश में कुल 14 सरकारी यूनिवर्सिटी हैं लेकिन इनके संचालन के लिए और विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए स्टाफ नहीं है। आंकड़े ऐसे हैं कि आप खुद पढ़कर चौंक जाएंगे:-
- राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा- 100% पद रिक्त।
- डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू इंदौर- 93% पद रिक्त।
- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर- 84% अतिरिक्त।
- पंडित एसएन शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल- 80% पद रिक्त।
- महर्षी पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन- 80% पद रिक्त।
- मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल- 79.62% पद रिक्त।
- अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा- 76% पद रिक्त।
- जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर 69.23% पद रिक्त।
- विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन 69% पद रिक्त।
- बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल- 62.85% पद रिक्त।
- देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर- 61.68% पद रिक्त।
- महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय 54% पद रिक्त।
- महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर 52% पद रिक्त।
- अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल- 51% पद रिक्त।
डॉ मोहन यादव, उच्च शिक्षा मंत्री पद हेतु अयोग्य ?
यदि एक उच्च शिक्षा मंत्री, सरकारी यूनिवर्सिटी में शिक्षक और स्टाफ उपलब्ध नहीं करा पा रहा है तो यह कहना उचित होगा कि उसने अपने कर्तव्यों के प्रति ध्यान नहीं दिया और एक उच्च शिक्षा मंत्री के तौर पर वह फेल हो गया है। भारत में सबसे पहले न्यू एजुकेशन पॉलिसी लागू करना, प्रशंसा का एक कारण हो सकता है परंतु इसे उपलब्धि नहीं कहा जा सकता। जब विश्वविद्यालयों में, सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने के लिए प्रोसेसर ही नहीं है तो फिर किसी भी एजुकेशन पॉलिसी को लागू करने से क्या फायदा होने वाला है। दूसरे शब्दों में इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि डॉक्टर मोहन यादव, उच्च शिक्षा मंत्री पद हेतु अयोग्य साबित हुए हैं।
कहीं कोई घोटाला तो नहीं
जब इतने बड़े पैमाने पर शिक्षकों एवं कर्मचारियों के पद रिक्त पड़े हुए हैं तो संदेह की स्थिति उपस्थित होती है। ऐसा तो बिल्कुल नहीं है कि मध्यप्रदेश में योग्य उम्मीदवार नहीं है, फिर क्या कारण है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती नहीं की गई। इस प्रकार के आरोप केंद्रीय कंपनी बीएसएनएल पर लगे थे। प्राइवेट कंपनियों को फायदा देने के लिए बीएसएनएल के कुछ टॉप अधिकारियों ने कुछ इस प्रकार के फैसले लिए थे जिससे बीएसएनएल की सेवाएं खराब हो गई थी। कहीं मध्यप्रदेश में भी तो ऐसा ही नहीं हुआ है। एक ऐसा घोटाला, जिसे कभी घोटाला नहीं कहा जा सकेगा, क्योंकि भारत में अयोग्य और लापरवाह मंत्री को दंडित करने का प्रावधान ही नहीं है।
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