यदि उद्योगपति पूँजी के माध्यम से उद्योग में अपना प्रतिनिधित्व करता है जो मजदूर श्रम के माध्यम से अपना प्रतिनिधित्व करता है। कुल मिलाकर पूंजीपति (उद्योगपति) एवं श्रमिकों का एक चोली दामन का साथ होता है। यदि पूँजी दामन है तो श्रम चोली है। आज यदि श्रमिकों को ग्रेच्युटी दी जाती है तो यह उद्योगपति की दया या दान नहीं है यह उनका एक अधिकार हैं, इसी संदर्भ में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 43(क) राज्य से क्या अपेक्षा करता है. जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 43 (क) की परिभाषा
अनुच्छेद 43 क राज्य से यह अपेक्षा (आशा) करता है कि राज्य विधि द्वारा इस कोई अन्य विनियम बनाकर उद्योग में लगे उपक्रमों, स्थापनाओ एवं अन्य संगठनों के संचालन के लिए कर्मकारों का भाग सुनिश्चित करने का प्रयत्न करें। साधारण शब्दों में कहें तो उद्योग या बड़े कारखानों में काम वाले मजदूरों के लिए संगठन स्थापित करने के लिए राज्य नियम बनाएगा। जिससे मजदूरों का शोषण नहीं किया जाएगा एवं वह अपने अधिकारों की सुरक्षा कर सकेंगे।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 43 की परिभाषा
राज्य, श्रमिकों की गरिमा एवं उनके व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए उन्हें निर्वाह योग्य मजदूरी देगा एवं उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगा क्योंकि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य की अनेक आवश्यकताएं होती हैं। मात्र रोटी, कपड़ा और मकान से ही उसकी सभी आवश्यकताएं पूरी नहीं होती है। श्रमिकों को सामाजिक एवं परिवारिक दायित्वों के निर्वाह के लिए और भी कुछ चाहिए। अतः सामान्य जीवन स्तर के लिए आवश्यक न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण न केवल संवैधानिक है अपितु समय के अनुकूल भी हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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