एक दूसरे के सहयोग से चलने वाले समूह को सहभागिता समूह कहते हैं। इसी प्रकार कोई संगठन किसी लोक कार्य के लिए बना है उसे सहकारी समिति कह सकते हैं। राज्य का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह राज्य के अंतर्गत संचालित सहकारी समितियों का विनिर्माण करे एवं इसके संबंध में नियम बनाए।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 43(ख) की परिभाषा
91वे संविधान संशोधन अधिनियम,2011 में भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया 43 (ख) यह राज्य को निर्देशित करता है कि राज्य में संचालित सहकारी समिति का विकास किया जाए ,उनका विनिर्माण, लोकतांत्रिक नियंत्रण(आम जनता के) में रखा जाए एवं उनके व्यावसयिक संचालन को प्रोन्नत करेगा है।
article 43b for promotion of cooperative societies
कुल मिलाकर कहें तो सभी सहकारी समिति जनता के कल्याण के लिए बनाई जाए एवं जनता द्वारा ही उन पर नियंत्रण हो इस प्रकार राज्य उनके निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण करे। वर्तमान में बहुत सारे NGO इसी अनुच्छेद का उदहारण है।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 43 (क) की परिभाषा
अनुच्छेद 43 क राज्य से यह अपेक्षा (आशा) करता है कि राज्य विधि द्वारा इस कोई अन्य विनियम बनाकर उद्योग में लगे उपक्रमों, स्थापनाओ एवं अन्य संगठनों के संचालन के लिए कर्मकारों का भाग सुनिश्चित करने का प्रयत्न करें। साधारण शब्दों में कहें तो उद्योग या बड़े कारखानों में काम वाले मजदूरों के लिए संगठन स्थापित करने के लिए राज्य नियम बनाएगा। जिससे मजदूरों का शोषण नहीं किया जाएगा एवं वह अपने अधिकारों की सुरक्षा कर सकेंगे।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 43 की परिभाषा
राज्य, श्रमिकों की गरिमा एवं उनके व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए उन्हें निर्वाह योग्य मजदूरी देगा एवं उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगा क्योंकि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य की अनेक आवश्यकताएं होती हैं। मात्र रोटी, कपड़ा और मकान से ही उसकी सभी आवश्यकताएं पूरी नहीं होती है। श्रमिकों को सामाजिक एवं परिवारिक दायित्वों के निर्वाह के लिए और भी कुछ चाहिए। अतः सामान्य जीवन स्तर के लिए आवश्यक न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण न केवल संवैधानिक है अपितु समय के अनुकूल भी हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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