दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 326 में दो मजिस्ट्रेट या न्यायधीश के बारे में बताया गया है पूर्ववर्ती मजिस्ट्रेट एवं उत्तरवर्ती मजिस्ट्रेट जानिए कौन होते हैं ये और किसको ज्यादा शक्ति प्राप्त होती है।
जब कभी किसी जाँच या विचारण में साक्ष्य को पूर्णत: सुनने एवं अभिलिखित करने के पश्चात न्यायधीश या मजिस्ट्रेट को लगता है की वह उसमे अपनी अधिकारिता शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता है एवं कोई अन्य मजिस्ट्रेट या न्यायधीश उसमें अपनी अधिकारिता शक्ति रखता है या प्रयोग कर सकता है। जिस मजिस्ट्रेट को अधिकारिता शक्ति रखने और प्रयोग करने का अधिकार है उसे उत्तरवर्ती मजिस्ट्रेट या न्यायधीश कहते हैं। एवं जिसे अधिकारिता रखने का अधिकार एवं प्रयोग करने की शक्ति प्राप्त नहीं थी उसे पुर्ववर्ती मजिस्ट्रेट या न्यायधीश कहते हैं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता 326 की उपधारा 1 के परन्तु के अधीन उत्तरवर्ती मजिस्ट्रेट को पूर्ववर्ती मजिस्ट्रेट के सुने साक्ष्यों को दोबारा से सुनने एवं परीक्षा करवाने की शक्ति प्राप्त होती है।
नोट:- यह धारा सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय मामलों पर लागू नहीं होती है अर्थात द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट अगर प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को मामला सौपता हैं तो द्वितीय वर्ग का मजिस्ट्रेट पूर्ववर्ती मजिस्ट्रेट होगा एवं प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट उत्तरवर्ती मजिस्ट्रेट होगा। -Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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