न्यायालय द्वारा आरोपी को या तो रिहा कर दिया जाता है अथवा जेल भेज दिया जाता है। यदि वह बीमार है तब भी, उसके इलाज की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की होती है। न्यायालय उसे जेल के स्थान पर अस्पताल नहीं भेज सकता, केवल जेल प्रशासन को आदेश दे सकता है कि आरोपी का इलाज कराया जाए परंतु एक स्थिति ऐसी होती है जब मजिस्ट्रेट, आरोपी को जेल के बजाय सीधे अस्पताल भेज सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 328 की उपधारा (1) की परिभाषा
जब कभी किसी व्यक्ति के विरुद्ध जाँच या विचारण चल रहा हो और मजिस्ट्रेट को लगता है की आरोपी विकृतचित्त अर्थात पागल है ओर अपना बचाब नहीं कर पा रहा है तब मजिस्ट्रेट पागल व्यक्ति की जाँच के लिए उसे सिविल सर्जन के पास भेजेगा। अगर सिविल सर्जन इस निष्कर्ष पर पहुचाता हैं कि आरोपी पागल है तब मजिस्ट्रेट आरोपी को मनोचिकित्सक या रोग विशेषज्ञ के पास उपचार के लिए भेज देगा।
साधारण शब्दों में कहे तो दण्ड प्रकिया संहिता की धारा 328(1) कहती हैं कि अगर डॉक्टरी जाँच के बाद मजिस्ट्रेट को लगता है कि आरोपी पागल है तब मजिस्ट्रेट आरोपी को पागलखाने (मनोचिकित्सालय) या मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेज देगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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