जब कोई आरोपी मानसिक रूप से विक्षिप्त होता है तब मजिस्ट्रेट इसकी की पुष्टि के लिए उसकी जाँच सिविल सर्जन डॉक्टर से करवाता है। अगर आरोपी मानसिक विक्षिप्त नहीं होता है तो उसका विचारण मजिस्ट्रेट सामान्य आरोपी की तरह करेगा लेकिन अगर आरोपी मेडिकल में मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं पाया गया तो मजिस्ट्रेट उसका इलाज करवाने के लिए चिकित्सलाय भेज देगा लेकिन प्रश्न यह है कि क्या ऐसे व्यक्ति को मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत पर रिहा किया जा सकता है, जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 328 की उपधारा 2 की परिभाषा
जब कभी पागल या विकृतचित व्यक्ति की परीक्षा या जाँच में लंबित समय लगता है तब मजिस्ट्रेट दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 330 की उपधारा 1 के अनुसार मजिस्ट्रेट विकृतचित व्यक्ति को जमानत दे सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 330 की उपधारा (1) क्या कहती है जानिए:-
जब कोई व्यक्ति विकृतचित या मानसिक रोग से ग्रहस्त हैं और वह अपनी प्रतिरक्षा नहीं कर पा रहा है तब न्यायालय द्वारा उसकी जमानत ली जा सकती है एवं मजिस्ट्रेट उसको छोड़ने के आदेश भी दे सकता है।
परन्तु ये तभी होगा जब विकृतचित (पागल) व्यक्ति इतना पागल नहीं है की उसका उपचार अनिवार्य है तब उसके मित्र या संबंधी को यह वचन देना होगा की विकृतचित व्यक्ति किसी व्यक्ति को कोई क्षति या हानि नहीं पहुचायेगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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