ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर की यूनियन बैंक आफ इंडिया बड़ागांव ब्रांच का बाबू की रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त ने गिरफ्तार किया है। बाबू का नाम हरीश गोड़िया है। हरीश गोड़िया 18 हजार रुपये रिश्वत पकड़ा गया है।
हरीश गोड़िया केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) लोन की स्वीकृत राशि को रिलीज करने के एवज में 10 प्रतिशत रकम रिश्वत के रूप में मांग रहा था। एक माह से उसने राशि रोककर रखी थी। डील होते ही राशि किसान के खाते में ट्रांसफर कर दी। बैंक के अंदर सोमवार को शाम करीब 5 बजे जैसे ही बाबू ने किसान से रिश्वत ली, तभी लोकायुक्त पुलिस की टीम ने उसे पकड़ लिया। उस पर भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत FIR दर्ज की गई है। इसके बाद नोटिस थमाकर उसे छोड़ दिया गया।
बेहटा गांव में रहने वाले किसान जगदीश पुत्र श्यामलाल कुशवाह को खेती के लिए रुपये की जरूरत थी। उसने केसीसी स्कीम के तहत लोन लेने के लिए यूनियन बैंक आफ इंडिया की बड़ागांव स्थित ब्रांच में आवेदन किया था। 27 मार्च को 1.77 लाख रुपये का लोन स्वीकृत हो गया। लोन स्वीकृत होने के बाद बैंक की लोन शाखा द्वारा उसके खाते में पैसा रिलीज किया जाना था। लेकिन यहां पदस्थ बाबू हरीश गोड़िया खाते में पैसा ट्रांसफर करने के एवज में कुल राशि की 10 प्रतिशत रकम रिश्वत के रूप में मांग रहा था। उसने 18 हजार रुपये की डिमांड की। उस समय किसान ने रुपये नहीं दिए। 27 अप्रैल को किसान बैंक पहुंचा, यहां बाबू से मिला। उसने फिर 18 हजार रुपये की डिमांड की, इस पर उसने रुपये देने की बात कही। खाते में पैसा आने के बाद रुपये देने की बात किसान ने कही। इसी बीच किसान ने लोकायुक्त पुलिस के एसपी रामेश्वर यादव से शिकायत की।
एसपी रामेश्वर यादव ने निरीक्षक कविंद्र सिंह चौहान और उनकी टीम को पड़ताल में लगाया। किसान को वाइस रिकार्डर दिया गया, जिसमें उसने बाबू की बातचीत रिकार्ड कर ली। इसके बाद खाते में पैसा आ भी गया। बाबू हरीश गोड़िया ने सोमवार को रिश्वत लेकर बुलाया। शाम करीब 5 बजे किसान 18 हजार रुपये लेकर बैंक पहुंचा। यहां लोकायुक्त पुलिस की टीम भी पहुंच गई। जैसे ही बाबू को किसान ने रिश्वत दी तो उसने रुपये लेकर बिना गिने ही पेंट की जेब में रख लिए। तुरंत लोकायुक्त पुलिस की टीम पहुंच गई। उसे पकड़ लिया गया। पेंट की जेब की तलाशी ली तो उसमें रुपये बरामद हुए। नोटों में पाउडर लगा हुआ था। उस पर एफआइआर दर्ज की गई।
घूसखोर बाबू हरीश गोड़िया से पहले तो किसान ने रिश्वत देने से इंकार कर दिया था। इस पर बाबू उससे बोला था- लोन स्वीकृत होने से पहले ही रिश्वत तय हो जाती है। 10 प्रतिशत फिक्स है। चाहे कोई भी लोन हो, रिश्वत तो देना ही पड़ती है। हिस्सा ऊपर तक जाता है, यही सिस्टम है। बाबू के यह शब्द घूसखोरी में डूबे पूरे सिस्टम की हकीकत बताते हैं। सरकार भले ही तमाम दावे करे, तमाम प्रयास किसानों के लिए करे, लेकिन हकीकत यही है। बिना घूसखोरी के बैंक से उन्हें लोन नहीं मिलता।
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