कई बार देखने में आता है की द्वेषवश, बदला लेने की नियत से थाने में अजमानतीय अपराधों के तहत एफआईआईआर दर्ज करवा देते है। ऐसे में एक आम नागरिक एवं निर्दोष व्यक्ति को बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ता है। अगर अपराध ऐसा है जो संज्ञेय एवं अजमानतीय प्रकृति का है, और आपको डर है की पुलिस आपको गिरफ्तार कर जेल में डाल सकती है। तो, ऐसी स्थिति से बचने के लिए आपको ऐसे में क्या करना चाहिए, जानिए:-
अगर किसी व्यक्ति ने आपके विरुद्ध झूठी FIR दर्ज की है और इस बात का आपके पास पर्याप्त सबूत की FIR झूठी है तो आप दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 438 में निहित प्रावधानों के तहत आप अग्रिम जमानत के लिए अर्जी लगा सकते हैं, जिससे आपकी गिरफ्तारी पर रोक लग जायेगी। इसके के बाद आपको थाने में जाकर केवल हस्ताक्षर करने पड़ेंगे।
सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाई कोर्ट को विशेष पावर है की ऐसी झूठे FIR को वह खारिज कर सकता है। FIR को खारिज करने के लिए आप दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 की अर्जी पर्याप्त सबूत के साथ शीघ्र लगा सकते है।
ध्यान रहे ये सारे प्रावधान केवल झूठी FIR के लिए है, जिसके विरुद्ध आपके पास पर्याप्त सबूतो एवं साक्ष्यों का आधार होना चाहिए।
एफआईआर खारिज होने के पश्चात आप झूठा रिपोर्ट करने वाले के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 182, 211 एवं मानहानि का परिवाद आप कोर्ट में दर्ज कर सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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