Supreme Court latest decision for divorce - Article 142
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक वैवाहिक विवाद के मामले का निराकरण करते हुए बताया कि, हर तलाक से पहले फैमिली कोर्ट और 6 महीने की प्रक्रिया अनिवार्य नहीं है। भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तत्काल तलाक मंजूर किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में सन 2016 से सुनवाई चल रही थी
जून 2016 में वैवाहिक विवाद का एक मामला सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने संविधान पीठ की ओर फॉरवर्ड कर दिया था। इस मामले में सितंबर 2022 में सभी पक्षों की सुनवाई पूरी हुई और संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने आज फैसला सुना कर मामले का अंतिम निराकरण कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, अगर पति-पत्नी के रिश्ते टूट चुके हों और उसके बचने की कोई गुंजाइश ही न बची हो, तो वह भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत बिना फैमिली कोर्ट भेजे ही तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए 6 महीने का इंतजार करना भी जरूरी नहीं होगा।
जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि अनुच्छेद- 142 के तहत पूर्ण न्याय करने का अधिकार हैं। पांच न्याधीशों की पीठ ने कहा कि हमने अपने निष्कर्षों के अनुरुप, व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है। ये बुनियादी सिद्धांतों का उल्लघंन नहीं होगा।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 में क्या लिखा है
संविधान के अनुच्छेद 142(1) के मुताबिक न्यायाधिकार का प्रयोग करते समय सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्णय या आदेश दे सकता है, जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले में पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिए अनिवार्य हो। इसके दिए निर्णय तब तक लागू रहेंगे जब तक इससे संबंधित कोई अन्य प्रावधान लागू नहीं कर दिया जाता।
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