व्यापम घोटाला हो या कुछ और कार्रवाई का शिकार हमेशा उम्मीदवार ही होता है। मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती घोटाले में 80 उम्मीदवारों के खिलाफ FIR के आदेश जारी हो गए हैं। इसमें 60 स्कूल शिक्षा विभाग और 17 ट्राइबल डिपार्टमेंट में नौकरी प्राप्त कर चुके थे। तीन उम्मीदवारों के सर्टिफिकेट में ओवरराइटिंग हुई है। जांच की जा रही है कि यह सर्टिफिकेट कूट रचित है या नहीं। हालांकि अभी तक उस डॉक्टर से पूछताछ भी नहीं हुई है जिसने अपने पद का दुरुपयोग करके रिश्वत के बदले दिव्यांगता के सर्टिफिकेट बनाए थे।
डॉक्टरों को पकड़ो, उन्हीं ने घोटाला किया है
उल्लेखनीय है कि इस मामले का खुलासा एक उम्मीदवार ने भोपाल समाचार डॉट कॉम के जरिए किया था। बताया था कि दिव्यांग कोटे में आरक्षित 755 पदों में से 450 मुरैना जिले से हैं। इनमें से ज्यादातर के दिव्यांगता सर्टिफिकेट हजीरा ग्वालियर और मुरैना से बनवाए गए हैं। मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल, भोपाल द्वारा लगातार इस मामले को फर्जी सर्टिफिकेट कहकर पुकारा जा रहा है, जबकि यह फर्जी सर्टिफिकेट का मामला नहीं है। जितने भी दिव्यांगता प्रमाणपत्र लगे हैं, सभी असली हैं। डॉक्टर के सिग्नेचर ओरिजिनल हैं, लेकिन रिश्वत लेकर बनाए गए हैं। इसके लिए जितना उम्मीदवार जिम्मेदार है उससे ज्यादा डॉक्टर जिम्मेदार है।
विज्ञान नेता प्रमाण पत्र घोटाले में ग्वालियर की भूमिका
ग्वालियर-चंबल संभाग सहित टीकमगढ़, छतरपुर जिलों में बहरे या कम सुनने का दावा करने वाले लोगों की जांच के लिए सरकारी अस्पतालों में कोई ऑडियोलॉजिस्ट ही पदस्थ नहीं है। इसके चलते बैरा और ऑडियोमेट्री की जांच के लिए जिला विकलांग पुनर्वास केंद्रों को ग्वालियर के जेएएच (जयारोग्य चिकित्सालय) भेजना पड़ता है। वहां से ऑडियोमेट्री या बैरा रिपोर्ट आवेदक द्वारा ही बोर्ड के सामने पेश किया जाता है।
बोर्ड ने भी इस जांच रिपोर्ट का प्रमाणीकरण करवाए बिना विकलांग प्रमाण पत्र जारी कर दिया। कहा जा रहा है कि इसी लूप का फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने में उपयोग किया गया। जांच में ये तथ्य सामने आए हैं कि कुछ टीचरों ने खुद से तैयार की गई ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड से दिव्यांग प्रमाण पत्र हासिल किए हैं। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि इस तरह की रिपोर्ट 15 से 20 हजार रुपए में तैयार हो जाती है।
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