यदि हम को पुलिस की मदद की जरूरत है तो हम पुलिस कंट्रोल रूम का नंबर 100 डायल करके मदद मांग सकते हैं परंतु यदि हम को कोई लिखित शिकायत करनी है। किसी के खिलाफ FIR दर्ज करवानी है तब हमें पुलिस के एक ऑफिस में जाना होता है। इस ऑफिस को पुलिस थाना कहते हैं, लेकिन हर इलाके में एक पुलिस कोतवाली भी होती है और कुछ पुलिस चौकियां भी होती है। सवाल यह है कि जब सभी जगह पुलिस जनता के लिए उपलब्ध होती है तो फिर उनके ऑफिस के नाम अलग-अलग क्यों होते हैं। पुलिस कोतवाली, पुलिस थाना और पुलिस चौकी में क्या अंतर होता है। आइए जानते हैं:-
भारत में पुलिस की स्थापना कब और क्यों की गई
सन 1857 की क्रांति के बाद भारत में पुलिस डिपार्टमेंट की स्थापना सन 1860 में हुई थी। इसका लक्ष्य था, भारतीय नागरिकों पर नियंत्रण रखना ताकि फिर से कोई बगावत ना कर पाए और लगान की वसूली में कलेक्टर की मदद करना। इसके तहत हर इलाके में पुलिस का एक ऑफिस खोला गया जिसमें पुलिस की पूरी एक टीम हमेशा तैनात रहती थी। ऑफिस का नाम कोतवाली रखा गया। इस ऑफिस के सबसे बड़े अधिकारी का पदनाम कोतवाल हुआ करता था। इस प्रकार कोतवाल के ऑफिस को कोतवाली कहा गया। आजादी के बाद पुलिस थाने और पुलिस चौकी अस्तित्व में आए लेकिन कोतवाली का अस्तित्व समाप्त नहीं किया गया। पुलिस के तीनों ऑफिसों में जनता की मदद के लिए पुलिस अधिकारी और कर्मचारी तैनात किए जाते हैं परंतु फिर भी तीनों की स्थापना में काफी बड़ा अंतर है।
पुलिस कोतवाली क्या होती है
जैसा कि अभी बताया गया कि, कोतवाल के ऑफिस को कोतवाली कहा जाता है। अब कोतवाल का पद नाम बदलकर DSP (उप पुलिस अधीक्षक) कर दिया गया है। कुछ इलाकों में DSP को SDOP अथवा CSP भी कहते हैं। इनके अंडर में कई थाने होते हैं। एवं कोतवाली में अपने आप में एक थाना होता है। इसलिए पुलिस कोतवाली को थाना कोतवाली भी कहते हैं।
पुलिस थाना क्या होता है
पुलिस थाने में सबसे बड़ा अधिकारी इंस्पेक्टर होता है। उसके अधीन कुछ सब इंस्पेक्टर और असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर होते हैं। जो मामलों की जांच करने के लिए इंस्पेक्टर की मदद करते हैं। इसके अलावा हेड कांस्टेबल और कॉन्स्टेबल होते हैं। जो इलाके में गश्त करने और अपराध नियंत्रण करने का काम करते हैं। अपराधियों को पकड़ने का काम भी कॉन्स्टेबल यानी आरक्षक यानी सिपाही करते हैं। कुल मिलाकर एक पुलिस थाने में इंस्पेक्टर से लेकर सिपाही तक की टीम होती है। इंस्पेक्टर के पास FIR दर्ज करने के अधिकार होते हैं। अपराधियों को गिरफ्तार करने के अधिकार होते हैं। न्यायालय में चालान पेश करने का कर्तव्य इंस्पेक्टर का होता है। कुछ इलाकों में सब इंस्पेक्टर को इंस्पेक्टर की पावर थाने का प्रभारी बना दिया जाता है।
पुलिस चौकी क्या होती है
यदि किसी थाने के अंतर्गत आने वाला इलाका क्षेत्रफल की दृष्टि से काफी बड़ा है। सिपाहियों को थाने से इलाके की गश्त पर जाना और वापस आना मुश्किल होता है। तब उस इलाके में एक पुलिस चौकी की स्थापना की जाती है। पुलिस चौकी में अपराधियों को नियंत्रित करने वाली पुलिस टीम विश्राम करने के लिए रूकती है। क्योंकि पब्लिक नहीं समझती इसलिए यहां पर एक रजिस्टर भी रखा होता है। लोगों की शिकायतें दर्ज कर ली जाती हैं परंतु यह कार्रवाई संबंधित पुलिस थाने के इंस्पेक्टर की अनुमति के बाद ही की जा सकती है।
इस प्रकार एक कोतवाली अपने आप में एक थाना होती है परंतु इसका सबसे मुख्य अधिकारी यानी कोतवाल (DSP, SDOP, CSP) आसपास के अन्य थानों का भी नियंत्रण करता है। जबकि थाना अपने आप में एक कंप्लीट पुलिस ऑफिस है, जिस की जनता को जरूरत होती है और पुलिस चौकी केवल गश्ती दल के आराम करने के लिए, या फिर किसी एक पॉइंट पर तैनात रहने के लिए बनाई जाती है। यह पुलिस ऑफिस सिस्टम की सबसे छोटी इकाई है।
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