CPC 27- सिविल मामलों में विपक्षी पक्षकार को समन भेजने के नियम जानिए

Bhopal Samachar

Civil Procedure Code section 27- summons

समन का शाब्दिक अर्थ है 'एक बुलावा, जब कोई वाद (सिविल मामला) न्यायालय में प्रस्तुत हो जाता है उसके बाद प्रतिवादी (विरोधी व्यक्ति) को सुनवाई का अवसर देने हेतु वाद के लम्बित होने की सूचना देना अनिवार्य होता है एवं एक पत्र के माध्यम से प्रतिवादी को सूचना दी जाती है इसे समन कहते हैं। जब कोई मामला न्यायालय में लंबित हो जाता है, तब प्रतिवादी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह चाहे तो वाद पत्र के खिलाप अपना प्रतिवाद पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करें। इसलिए प्रतिवादी को वादी की और से समन न्यायालय द्वारा भेजा जाता है।

जानिए समन तामील करने के क्या नियम है संक्षिप्त में:-

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 27 में बताया गया है की अगर किसी प्रतिवादी को समन भेजा जाता है तब समन के साथ वाद-पत्र की प्रतिलिपि भी भेजी जाएगी,बिना वाद पत्र के समन तामील नहीं माना जायेगा।
• समन वाद पत्र के संस्थित कंरने के 30 दिन के भीतर ही तामील किया जाना आवश्यक है।
• प्रतिवादी द्वारा समन प्राप्त होने पर 30 दिन के भीतर प्रतिवादी पत्र देना होगा। 

437 और 439 सीआरपीसी में क्या अंतर है? 

● संहिता की धारा 437 मृत्यु या - आजीवन कारावास की सजा वाले अपराधों के मामलों में जमानत देने पर रोक लगाती है, जब तक कि यह अविश्वसनीय न हो कि आरोपी दोषी है। तथा धारा 439 सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय को ऐसे मामलों में भी जमानत देने का अधिकार देती है।

● सीआरपीसी की धारा 389 में प्रावधान है कि अगर सजा काट रहा अपराधी अपीलीय अदालत में अपील दायर करता है, तो उचित औचित्य और कारणों पर उसकी सजा को निलंबित किया जा सकता है। लेकिन निलंबन से पहले, ऐसी अपीलीय अदालतों को लिखित में कारणों को दर्ज करना होता है, और यदि अपराधी को जेल में रखा जाता है, तो उसे जमानत पर या अपने बॉन्ड के आधार पर रिहा किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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