CPC 30a- सिविल कोर्ट कब वादी को विपक्ष से प्रश्न करने का आदेश दे सकता है, जानिए

Bhopal Samachar

section 30a of the civil procedure code

जब कोई वाद कोर्ट में दायर किया जाता है तब न्यायालय का दायित्व होता है की वह निष्पक्ष निर्णय सुनाए। कोई भी निर्णय, आदेश, या डिक्री जहाँ तक संभव हो एकपक्षीय नहीं होना चाहिए। दोनो पक्षों की सुनवाई के बाद ही न्यायालय को कोई निर्णय लेना चाहिए। न्यायलय में कोई भी पक्ष आपने पक्षकार से वाद से संबंधित प्रश्न कर सकता है एवं इसका उसे कानूनी अधिकार प्राप्त होता है जानिए।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 30 (क) की परिभाषा

न्यायालय चाहे तो स्वयं या किसी पक्ष के प्रार्थना पत्र पर यह आदेश कर सकता की साक्षी अमुक(कोई)सबूत अगर है तो न्यायालय में प्रस्तुत करें जिसे न्याय देने में आसानी हो।

इस धारा के अंतर्गत किसी भी पक्षकार को अधिकार है कि वह अपने प्रतिपक्ष से प्रश्न कर सकता है कोई भी प्रश्न निश्चित रूप से न्यायालय के अनुमति से एवं प्रत्यक्ष रूप से न्यायालय में लंबित विवाद से संबंधित ही होगा।

परन्तु कोई प्रश्न पक्षकार को चिढ़ाने वाला, बदनाम करने वाला या मान हानिकारक नहीं होना चाहिए न्यायालय सुनवाई के समय ऐसे प्रश्न को हटा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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