हमने हमारे पिछले लेखों में बताया था की व्यक्ति अपनी बात को शपथ पत्र के माध्यम से भी न्यायालय में पेश कर सकता है, लेकिन कोई शपथ-पत्र न्यायलय की कार्यवाहियों में पेश होता है तो उसे न्यायालय के शपथ आयुक्त द्वारा सत्यापित करवाया जाता है। इसे न्यायिक शपथ पत्र कहते हैं और अगर किसी को न्यायालय से बाहर अर्थात सरकार के न्यायालयों में जैसे राजस्व न्यायालय, आयुक्त न्यायालय आदि में पेश करना है तो तब उसे नोटरी द्वारा सत्यापित करवाया जाता है, जिसे गैर न्यायिक शपथ पत्र कहते हैं।
कुलमिलाकर कहें तो गैर न्यायिक शपथ पत्र की न्यायिक कार्यवाही में कोई औपचारिकता नहीं होती है, न ही इन्हें साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है, क्योंकि न्यायिक कार्यवाही के लिए न्यायिक शपथ पत्र होना जरूरी होता है। सिविल कोर्ट कब साक्षी को आदेश कर सकता है कि वह अपनी बात को शपथ पत्र के माध्यम से साबित कर दे जानिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 30(ग) की परिभाषा
न्यायालय किसी भी पक्षकार को उक्त धारा के अनुसार यह आदेश दे सकता है की वह अपने साक्ष्य को या किसी बात को शपथ पत्र के माध्यम से साबित करे।
ज्यादातर न्यायालय इस धारा का प्रयोग साक्षी की स्थिति देख कर करता है जैसे की कोई साक्षी न्यायालय पहुचने में असमर्थ है या बीमार हैं या कोई अन्य कारण से अन्य में उपस्थित नहीं हो सकता है तब ऐसा पक्षकार अपनी बात को शपथ पत्र में माध्यम से साबित कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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