DEFINITION OF SUB-SECTION 01 OF SECTION 34 OF THE CODE OF CIVIL PROCEDURE, 1908
जब कोई बैंक लोन देती है या किसी निजी व्यक्ति द्वारा या निजी समूह द्वारा पैसे उधार लिए जाते हैं तब ऐसे में लेनदार से पैसों का ब्याज तक देने का अग्रीमेंट (करार) किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति उधार लिए पैसों को नहीं चुकाता और पैसों को लेनदार व्यक्ति (बैक, निजी संस्था आदि) देनदार (उधार लेने वाले) व्यक्ति के खिलाफ न्यायालय में वाद दायर कर देता है, तब न्यायालय मूलधन के साथ वादी (शिकायतकर्ता) को ब्याज तक के पैसे अदा करने का आदेश देगा जानिए।सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 34 की उपधारा 01 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त रूप में)
सिविल न्यायालय पक्षकार को तीन प्रकार से ब्याज देने का प्रावधान करता है अभी हम उपधारा 01 का 01 वर्णन कर रहे हैं जानिए:-
1. किसी मामले को लगाने से पहले तक का ब्याज :- न्यायालय यह अभिनिर्धारित कर सकता है की पक्षकार(प्रतिवादी) लिए पैसों का ब्याज उसी विधि के अनुसार देगा जो उसने उधार पैसे लेते हुए संविदा, करार की थी अर्थात किसी बैंक द्वारा उसे 17% ब्याज दर से पैसे उधार दिए हैं तो यह 17% ब्याज के अनुसार ही पैसों का भुगतान करेगा।
परन्तु जहाँ कोई करार परक्राम्य लिखित अधिनियम,1881 की धारा 80 के अंतर्गत वचन पत्र या विनियम पत्र में पैसों के ब्याज का करार नहीं किया है तब न्यायालय 6℅ वार्षिक ब्याज की दर अभिनिर्धारित कर सकता है, इससे अधिक नहीं।
नोट:- तेजलपट्टी टी. प्रा. लि. बनाम ईस्टर्न टी. ब्रोकर्स लि. मामले में गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया है कि कृषि उत्पादन के लिए लिये गये लोन पर किसी भी प्रकार का चक्रवर्ती ब्याज नहीं लिया जा सकता है।
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