पैसों के लेनदेन के मामले में न्यायालय तीन प्रकार से मूलधन का ब्याज देने का निर्धारण करता है सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 34 की उपधारा 01 में हमने आपको बताया था कि वाद के लगाने के पहले के पैसों के ब्याज का भुगतान किस प्रकार किया जाएगा। आज के लेख में हम बताएंगे कि वाद के लगाने के बाद और डिक्री पारित होने तक पैसों का ब्याज न्यायालय द्वारा क्या होगा जानिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 34 की उपधारा 02 की परिभाषा(सरल एवं संक्षिप्त रूप में)
वाद संस्थित करने से डिक्री पारित करने तक की तारीख का ब्याज न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है अर्थात न्यायालय ऐसे ब्याज का आदेश दे सकता है जैसा वह ठीक समझे लेकिन ब्याज दर 6% वार्षिक से अधिक नहीं होगी।
संविदा भंग के लिए प्रतिकर के मामलों में ब्याज जानिए
जहाँ मामला किसी संविदा भंग के लिये प्रतिकर (अनुदान) के बारे में है एवं पक्षकारों के बीच मे ब्याज के संबंध में कोई अनुबंध नहीं हुआ है वहाँ ऐसे मामलों में वाद लगने की तिथि से डिक्री पारित होने की तिथि तक का ब्याज नहीं दिलाया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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