Definition of section 89 of the Code of Civil Procedure, 1908 in Hindi
भारत के न्यायालयों में सिविल मामलों की दाखिला दर उनके निपटारे की तुलना में काफी ज्यादा है। इसके कारण विवादों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह पिछले कई सालों से हो रहा है। वैसे भी ज्यादातर सिविल मामलों में दोनों पक्ष एक ही परिवार के होते हैं। या फिर दोनों पक्षों के बीच कभी घनिष्ठ संबंध रहे होते हैं। न्यायालय का प्रयास होता है कि विवाद का निपटारा भी हो जाए और सामाजिक संबंध भी खराब ना हो। यही कारण है कि कुछ मामलों को न्यायालय के बाहर निपटारा करने की छूट दी जाती है।सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 89 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में)
न्यायालय इस धारा के अधीन वाद या कार्यवाहियों के पक्षकारों से विवादों के मैत्रीपूर्ण समाधान किए जाने की अपेक्षा निम्न प्रकार से करेगा:-
(क). मध्यस्थम् एवं सुलह द्वारा :- मध्यस्थम् एवं सुलह के माध्यम से निपटारे के लिए मध्यस्थम् ओर सुलह अधिनियम,1996 के प्रावधान अनुसार मामले का निपटारा किया जा सकता है।
(ख) न्यायिक निपटारा अर्थात लोक अदालत के माध्यम से:- विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 की धारा 20 की उपधारा 01 के प्रावधानों के अनुसार लोक अदालत द्वारा विवादों का निपटारा किया जा सकता है। एवं
(ग). न्यायिक निपटारे के लिए न्यायालय किसी भी संस्था को जैसे वन स्टॉप सेंटर आदि या किसी व्यक्ति को संदर्भित किया जा सकता है एवं इनमें विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 के सभी प्रावधान लागू होंगे।
(घ). मध्यस्थता:- मध्यस्थता के अंतर्गत न्यायालय पक्षकारों के मध्य हुए समझौता को लागू करेगा।
नोट:- अगर उपर्युक्त समस्त प्रयासों के बाद विवादों का निपटारा नहीं होता है तब मामले में विचारण की प्रक्रिया न्यायालय द्वारा प्रारंभ कर दी जाएगी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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