Civil Procedure Code, 1908
आपराधिक मामलों में दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 301 एवं 303 के अंतर्गत पक्षकारों की सहमति से उनके मनपसंद अधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है। आज के लेख में हम बताते हैं सिविल मामलों में पक्षकारों किस कानून के अंतर्गत वकीलो की नियुक्ति कर सकता है क्योंकि न्यायालय की कार्यवाहियों को समझना आम व्यक्ति के समझ से बाहर होता है इसलिए उसे अधिवक्ता की नियुक्ति करने का कानूनी अधिकार होता है जानिए।
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 का आदेश क्रमांक 03 का नियम क्रमांक 04 की परिभाषा
कोई भी पक्षकार या उसका एजेंट आदेश क्रमांक 03 के नियम 04 के अंतर्गत किसी भी ऐसे व्यक्ति को जो अधिवक्ता हो, प्लीडर हो, वकील हो या जिसका नाम राज्य बार कोंसिल की नामांकन सूची में शामिल हो उसे वाद की कार्यवाही में भाग लेने, बहस कंरने, के लिए नियुक्त कर सकता है।
वकालतनामा पेश होने के बाद क्या वकील को हटा सकते हैं
वकालतनामा पेश होने के बाद क्या वकील केस लड़ने से मना कर सकता है
श्रीमती चम्पा देवी बनाम यू पी इलेक्ट्रॉसिटी (निर्णय वर्ष 1992):- उक्त मामले में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि कोई भी अधिवक्ता, वकील बिना न्यायालय की अनुमति और पक्ष को पर्याप्त समय दिये बिना वाद से अपने को अलग नहीं कर सकता है। इसी प्रकार कोई भी पक्षकार अपने वकील को बिना न्यायालय के अनुमति से हटा नहीं सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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