कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा खरीफ मौसम में भरपूर उत्पादन प्राप्त करने के लिए जिले के किसानों को सावधानियां बरतने की सलाह दी गई है। इस साल का मानसून, पिछले सालों से अलग रहने की उम्मीद है इसलिए किसानों को कुछ विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है।
सोयाबीन और धान की नई अच्छी किस्म
कृषि विज्ञान केन्द्र ने सलाह दी है कि सोयाबीन का भरपूर उत्पादन के लिए सोयाबीन की जेएस 20-116, जेएस 20-98, जेएस 20-69, जेएस 20-34, आरव्हीएस 2001-4 प्रजाति का उपयोग करें। मक्का की जेएम 216, जेएम 218, हायसेल, डीकेसी 9126, डीकेसी 8144 का उपयोग करें। धान की एमटीयू 1010, पी 1480, पीबी 1, पीएस 5, जेआरएच 5, जेआरएच 8, आईआर 36/64 का उपयोग करें।
सोयाबीन की फसल के लिए दवाइयां
सोयाबीन की फसल में थायोफिनेट मिथाइल एवं पायरोक्लोस्ट्रोबिन 2 मिली/किग्रा एवं थायोमेथाक्जाम 2 ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीजोपचार अवश्य करें। जिन खेतों में जड़ एवं तना सडऩ का प्रकोप होता है, वहां 5 लीटर/हे. ट्रायकोडर्मा कल्चर का प्रयोग भूमि में बोने के समय करें। सोयाबीन के बीज को फफूंदनाशक, कीटनाशक एवं राइजोबियम कल्चर के द्वारा उपचारित करके ही बोयें।
सोयाबीन फसल में 20:60:30 किग्रा प्रति हेक्टेयर नत्रजन, स्फूर, पोटाश क्रमश: के साथ 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट तथा मक्का एवं धान में 120:60:30 किग्रा प्रति हेक्टेयर नत्रजन, स्फूर, पोटाश क्रमश: के साथ 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट देवें। पोटाश एवं जिंक सल्फेट अनिवार्य रूप से देवें। इससे उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार एवं फसल में कीट व्याधि का प्रकोप कम होता है।
सोयाबीन की बीज दर
सोयाबीन हेतु 70 से 75 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर (मोटे दाने वाली प्रजातियों के लिए) एवं 60 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर (बारीक दाने वाली प्रजातियों के लिए), धान की बुवाई के लिए 90 से 100 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर तथा मक्के हेतु 15 से 20 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें। सोयाबीन की बोनी मेढऩाली पद्धति से 45 सेमी कतार से कतार एवं 10-12 सेमी पौधे से पौधे की दूरी रखकर करें। मक्के को 60 सेमी कतार से कतार एवं 30 सेमी पौधे से पौधे की दूरी पर हाथ से लगाएं।
सोयाबीन एवं मक्का की फसल हेतु सावधानियां
सोयाबीन एवं मक्का की फसल जल भराव वाले खेतों में न लगाएं या प्रभावी जल निकास सुनिश्चित करें। कीट प्रकोप (फॉल आर्मी वर्म, तने की मक्खी) कम करने हेतु ज्वार एवं मक्के की शुष्क बोनी मानसून पूर्व करें।
खरपतवार प्रबंधन हेतु परंपरागत विधियों को प्राथमिकता दें। रासायनिक प्रबंधन में अंकुरण पूर्व प्रयोग किये जाने वाले रसायनों को भी समुचित स्थान दें। अनाज वाली फसलें (ज्वार, मक्का, धान आदि) में नत्रजन की पूर्ति (टॉप ड्रेसिंग) हेतु नैनो यूरिया को प्राथमिकता दें।
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