जब वादों की संख्या अधिक हो जाती है तो आम नागरिकों को न्याय मिलने में बहुत देरी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में जिले में एक ही मूल न्यायालय होता है। जिला कोर्ट की संख्या को घटाया बढाया नहीं जा सकता है, इसलिए अतिरिक्त न्यायालयों के गठन किया जाता है, जिन्हें हम प्रथम अतिरिक्त न्यायालय, द्वितीय अतिरिक्त न्यायलय एवं सिविल जज के रूप में जानते हैं।
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 150 की परिभाषा
मामलों को अन्तरण करना: कोई भी मूल न्यायालय अर्थात जिला न्यायालय वादों को बहुल्यता देखे हुए किसी भी अतिरिक्त न्यायालय में वादों को ट्रांसफर कर सकता है एवं सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 150 के अंतर्गत अतिरिक्त न्यायालय को उन हस्तांतरित मामलों में वही अधिकार प्राप्त होंगे हो मूल न्यायालय को प्राप्त होते हैं।
CPC 150 सरल हिंदी में
निष्कर्ष यह कि, जिला न्यायालय पर काम का बोझ अधिक बढ़ जाने के कारण जो अस्थाई न्यायालय गठित किया जाता है उसे अतिरिक्त न्यायालय कहते हैं एवं जिला न्यायालय अपनी समस्त शक्तियां प्रदान करते हुए अतिरिक्त न्यायालय को अपने न्यायालय के अतिरिक्त मामले सुनवाई एवं निर्णय के लिए सौंप देता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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