ऐसे अपराध जिनके लिए अपराधी को 7 वर्ष से अधिक जेल, आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड निर्धारित किया गया है। ऐसे मामले के आरोपियों को भी गिरफ्तारी के बाद ट्रायल के दौरान जमानत नहीं मिलती, लेकिन कुछ मामले ऐसे होते हैं जब आरोपी को कोर्ट द्वारा जमानत दे दी जाती है। आइए जानते हैं कि कब, किन परिस्थितियों में और किस प्रकार से गंभीर अपराध के आरोपी को कोर्ट से जमानत मिल सकती है।
Section 11 of the Bail Act, 2017
जमानत अधिनियम, 2017 की धारा 11 में स्पष्ट रूप से बताया है कि कोई भी आरोपी जिसने ऐसा अपराध किया है जो मृत्यु दण्ड से, आजीवन कारावास से या सात वर्ष से अधिक कारावास से दण्डित अपराध है ऐसे आरोपी को न्यायालय जमानत पर नहीं छोड़ सकता है परंतु महिला आरोपी, 16 वर्ष से कम उम्र के आरोपी, विकलांग आरोपी, या कोई बीमारी ग्रस्त आरोपी को न्यायालय उक्त अपराध में जमानत दे सकता है।
जमानत अधिनियम, 2017 की धारा 12 की परिभाषा
किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा किया गया अभिकथित अपराध मृत्यु दण्ड, आजीवन या सात वर्ष या उससे अधिक कारावास से दंडनीय है तो लोक अभियोजक (सरकारी अधिवक्ता) की सुनवाई के अवसर के बिना उक्त धारा 11 क़े अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा।
कुलमिलाकर कहें तो सरकारी अधिवक्ता के पक्ष को सुनने के बाद मजिस्ट्रेट को लगता है की आरोपी को जमानत पर छोड़ना न्यायोचित हैं अर्थात विचारण लंम्बा चलेगा या आरोपी के खिलाफ लगाया गया इल्जाम सन्देह के दायरे में है तब मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत पर छोड़ सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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