हर माता पिता अपनी संतान को जीवित रहते अपनी संपत्ति का बटवारा करना चाहते हैं। कुछ माता पिता तो ऐसे होते हैं बच्चों को यह विश्वास करके संपत्ति दे देते हैं कि मेरा बेटा या बेटी जिंदगी भर मेरी देख रेख करेगा। अपनी संतान पर ऐसा विश्वास होना भी चाहिए, परंतु फिर भी कई बार कानून के संरक्षण की आवश्यकता पड़ जाती है। इसलिए वरिष्ठ नागरिक, रिटायर्ड कर्मचारी, पेंशनर्स आदि इस जानकारी को एक बार अवश्य पढ़ें।
एक छोटी सी कहानी- संतान और संपत्ति
रामती देवी ग्राम बसाई, गुरुग्राम हरियाणा की रहने वाली थी। उसके पति की मृत्यु के बाद पति की संपत्ति की वह स्वयं उत्तराधिकारी बनी। उसने कुछ जमीन अपनी पुत्री सुदेश एवं पुत्र सुंदर को रजिस्ट्री करवा दी और उनके नाम ट्रांफर करवा दी लेकिन कुछ समय बाद पुत्र एवं पुत्री ने उनकी देख रेख नहीं की। तब उन्होंने एसडीएम कोर्ट में अर्जी लगा दी, एवं न्यायालय से अपेक्षा की, कि ट्रांसफर की गई भूमि की रजिस्ट्री निरस्त की जाए एवं न्यायालय ने भी उस संपत्ति की रजिस्ट्री को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 में स्पष्ट कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति, दान, विक्रय पत्र या अन्य किसी भी प्रकार से प्राप्त करता है ओर संपत्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक की देखभाल नहीं करता है तो ट्रांसफर संपत्ति शून्य कर दी जाएगी।
इसके बाद आगे क्या हुआ यह वरिष्ठ नागरिकों को जानने योग्य है:-
सुदेश छिकारा बनाम रामती देवी एक अन्य (निर्णय वर्ष 2022)
इस मामले में जो निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया वह एक चौंकाने वाला निर्णय था एवं वरिष्ठ नागरिकों को सावधान करता है। न्यायालय ने अवलोकन किया कि उक्त अधिनियम की धारा 23 में कहा है कि अगर किसी वरिष्ठ नागरिक ने अपनी संपत्ति किसी व्यक्ति को दान की है, रजिस्ट्री द्वारा दी है या विक्रय अनुसार ट्रान्सफर की है तब वरिष्ठ नागरिक को इसी शर्ते लिखत रूप में देनी होगी अर्थात संपति देते समय पुत्र या पुत्री को पर यह शर्त अधिरोपित करनी होगी कि वह उनकी सुख सुविधा एवं भरण पोषण की जिम्मेदारी लेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसी शर्त लिखित या कानूनी प्रावधानों के अनुसार नही है तो ट्रांसफर संपत्ति का ठोस आधार नहीं होगा। रामती ने जो संपति अपने पुत्र, पुत्री को दी थी तब ऐसी कोई शर्त अधिरोपित नहीं की थी कि वह उनकी सुख सुविधाओं एवं भरण पोषण का ध्यान रखेंगे इसलिए रजिस्ट्री संपत्ति शून्य नहीं की जा सकती है।
मोरल ऑफ द स्टोरी
वरिष्ठ नागरिकों को इस मामले से सीख लेनी चाहिए कि पुत्र या पुत्री पर विश्वास करने संपत्ति देने से पहले माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम,2007 के प्रावधानों को अवलोकन जरूर कर ले। संपत्ति की रजिस्ट्री कराते समय, दान करते समय अथवा उपहार में देते समय, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए वैधानिक तरीके से भरण पोषण की शर्त का उल्लेख अवश्य करें। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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