Section 32 of the Indian Evidence Act, 1872
भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 32 में कहा गया है की किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया गया मृत्युकालिक कथन एक ठोस साक्ष्य होगा लेकिन एक निर्णय द्वारा इस कानून को चुनोती दी गई हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जानिए महत्वपूर्ण जानकारी।
Dying declaration- वाद का महत्वपूर्ण तथ्य
पीडिता की मौत उस समय हो गई थी जब आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया था, बालात्कार के बाद आरोपी ने पीड़िता के ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी। जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन मृत्यु उपरांत उसने साक्ष्य के लिए स्वंय मृत्युकालीन कथन दे कर गई थी। सेशन न्यायालय द्वारा आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 341, 376, 448 के अंतर्गत आजीवन कठोर कारावास से दण्डित किया गया।
जानिए इसके बाद हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ:-
झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय @ पाण्डव राय (निर्णय वर्ष 2022)
जिला एवं सत्र न्यायालय के निर्णय को झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 में निरस्त कर दिया एवं आरोपी को दोषमुक्त कर दिया। इसका प्रमुख कारण उच्च न्यायालय द्वारा बताया गया कि जब पीड़िता के मृत्युकालिक कथन दिए गए थे, वे कथन कारण, परिस्थिति, एवं घटना से भिन्न बताए गए थे एवं मृत्युकालिक कथन सुसंगत नहीं दे। इसलिए मृत्युकालीन कथन साक्ष्य का ठोस आधार नहीं होगा।
उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील प्रस्तुत की गई एवं सुप्रीम कोर्ट ने अवलोकन किया कि पीड़िता ने कहा था कि आरोपी ने उसके ऊपर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया और उसके ऊपर आग लगा दी। मृतिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साबित होती है एवं पीड़िता ने कहा था कि आरोपी ने आग लगाने से पूर्व उसके साथ बलात्कार किया था। यह बात संव्यवहार के परिस्थितियों का वर्णन है, इसलिए पीड़िता के कथन साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 32(1) के अंतर्गत मृत्युकालीन कथन माना जायेगा।
अतः सेशन न्यायालय की दोषसिद्धि का निर्णय व दण्डादेश पुनर्स्थापित किया जाता है एवं हाईकोर्ट के दोषमुक्ति के निर्णय को निरस्त किया जाता है।
नोट:- मृत्यु कालीन कथन के मामलों में वकील इस केस का रिवीजन करते हैं। परीक्षण करते हैं कि उनका केस, इस केस के समान है या इससे भिन्न है।
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