एक मां, जिसने अपनी बेटी के लिए दशकों से लागू कानून भंग करवा दिया - Legal general knowledge

Bhopal Samachar
सामान्य जनजीवन में कहते हैं कि, कानून का पालन तो सब को करना होता है लेकिन भारत का संविधान प्रत्येक आम नागरिक को यह अधिकार देता है कि यदि कोई कानून उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तो ऐसे कानून को एक अबला और विधवा नारी भी भंग करवा सकती है। श्रीमती मैरी रॉय की कहानी सबको पढ़ना चाहिए, जिसने अपनी बेटी को उसका हक दिलवाने के लिए दशकों से लागू कानून को भंग करवा दिया।

त्रावणकोर ईसाई उत्तराधिकारी अधिनियम 1092 की कहानी

पिछले लेख में हमने बताया था कि किस प्रकार 62 साल की शाह बानो बेगम ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए भारत की सभी मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद भरण-पोषण भत्ता का अधिकार दिलाया (यदि नहीं पढ़ पाए हैं तो लिंक इसी पोस्ट में सबसे नीचे मिल जाएगी।) एक और कानून था, जिसका नाम था त्रावणकोर ईसाई उत्तराधिकारी अधिनियम 1092, इस अधिनियम के तहत लड़कियों को अपनी पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त नहीं था। यदि कोई पिता, अपनी पुत्री को अपनी संपत्ति में हिस्सा देना चाहता है तो उसे मृत्यु से पहले वसीयत करना अनिवार्य था। 

मैरी रॉय के संघर्ष की कहानी का फ्लैशबैक

मैरी रॉय, कोचीन की रहने वाली थी। उसके पति बिना वसीयत बनाए स्वर्गवासी हो गए। मैरी की बेटी अंरुधती रॉय थी, लेकिन त्रावणकोर ईसाई उत्तराधिकार अधिनियम 1092 के तहत अरुंधति, अपने पिता की संपत्ति की लीगल बारिश नहीं हो सकती थी। मैरी ने आपने समुदाय के बनाये कानून को चुनौती देने का फ़ैसला किया, क्योंकि इस अधिनियम में बिना वसीयत के पिता की संपत्ति पर बेटी का अधिकार नहीं था, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था। बेटी को अधिकारी दिलाने के साथ उन्होंने सभी सीरियाई, ईसाई महिलाओं को भी संपत्ति का सामान अधिकार मिलना चाहिए, यह बात रखी।

श्रीमती मैरी रॉय बनाम केरल राज्य (निर्णय वर्ष 1986)-सुप्रीम कोर्ट

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1986 में निर्णय आया एवं कोर्ट ने मैरी रॉय के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम,1925 कोचीन में रहने वाले सभी ईसाई महिलाओं पर लागू होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटा हो या बेटी, पिता की मौत बिना वसीयत के होने पर बराबर का समान अधिकार प्राप्त होगा।

इस निर्णय के बाद उत्तराधिकारी अधिनियम में व्यापक संशोधन होते रहे।
यहां क्लिक करके पढ़िए- 62 साल की मुस्लिम महिला, जिसने CrPC में संशोधन करवा दिया

महत्वपूर्ण नोट:- अगर आपके किसी भी प्रकार के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो आप अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 226 के अंतर्गत डायरेक्ट सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट में क़ानूनी अधिकार प्राप्त कंरने के लिए रिट याचिका लगा सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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