कहते हैं कि मंत्रालय का चपरासी भी जिले के अधिकारी से ज्यादा पावरफुल होता है परंतु मध्य प्रदेश के मंत्रालय में तो चपरासी भी नहीं बचे हैं। अफसरों और उनके मेहमानों को वीआईपी फील कराने वाले चपरासियों की संख्या में भारी कमी हो गई है। वैसे संख्या तो अफसरों की भी कम हो गई है। अतिरिक्त सचिव के तो केवल 3 पद हैं और तीनों रिक्त पड़े हैं।
मध्य प्रदेश के मंत्रालय में बाबुओं का टोटा
मध्यप्रदेश में एक तरफ आबादी बढ़ रही है दूसरी तरफ जनता और सरकार के बीच में सेतु का काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। हालात यह है कि मंत्रालय में 2539 पद स्वीकृत हैं। इनकी संख्या बढ़ जानी चाहिए परंतु नवीन पदों की स्वीकृति तो दूर की बात है, स्वीकृत पदों में से 1107 पद खाली पड़े हुए हैं। कोई रिटायर हो रहा है तो कोई VRS लेकर जा रहा है। नवीन पदस्थापना नहीं हो रही है। बाबू किसी भी ऑफिस की पहचान होते हैं परंतु मंत्रालय में सहायक वर्ग-2 के 602 में से 199 पद खाली पड़े हुए हैं।
भोपाल में सिर्फ मंत्रालय है, मंत्रालय में अधिकारी नहीं है
मध्य प्रदेश की स्थिति यह है कि राजधानी भोपाल में केवल मंत्रालय है। मंत्रालय के अंदर जनता की समस्याओं को सुनने और उनका निराकरण करने के लिए अधिकारी नहीं है। अतिरिक्त मुख्य सचिव के सभी पद रिक्त पड़े हुए हैं। उपसचिव के 14 में से 13 पद रिक्त हैं। अवर सचिव के 57 में से 31 पद रिक्त पड़े हुए हैं। यही हालात रहे तो 2028 के विधानसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश का मंत्रालय, सिर्फ पर्यटक स्थल बनकर रह जाएगा।
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