CPC 47- सिविल मामलों में किसी तथ्य को न्यायालय किस आधार पर रिकॉर्ड पर लेता है, पढ़िए

Bhopal Samachar
जब कोई सिविल मामला न्यायालय में दायर होता है तब पक्षकार एक दूसरे बहुत से आरोप-प्रतिरोप लगाते हैं। बहुत सी ऐसी बातें, तथ्यों को बताते हैं जो मामले से संबंधित ही नहीं या किसी अन्य अपराध से संबंधित होती है। ऐसे में किन तथ्यों को विचारण में स्वीकार करना है किन्हें अस्वीकार करना है न्यायालय इसका निर्णय कब करेगा जानिए।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 47 की परिभाषा

1. वे सभी प्रश्न जो उस वाद के पक्षकारों के या उनके प्रतिनिधि के बीच पैदा होते हैं, जिनमे डिक्री पारित की गई थी और जो डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या तुष्टि से सम्बंधित है डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय द्वारा पृथक वाद द्वारा अवधारित किए जाएंगे या नहीं किये जायेंगे।

2.जब ये प्रश्न उत्पन्न होता है की कोई व्यक्ति किसी पक्षकार का प्रतिनिधि है या नहीं, वहाँ न्यायालय द्वारा इस बात का अवधारित किया जाएगा न की पक्षकारों के अनुसार।

साधारण शब्द में कहें तो अगर किसी व्यक्ति के विरुद्ध पांच हजार रुपए देने की डिक्री पारित हुई है और वह डिक्रीधारी व्यक्ति को राशि नहीं देता है, अब डिक्रीधारी व्यक्ति विरोधी पक्षकार पर आरोप लगाता है की वह अवैध कमाई करता है और अवैध कमाई से उसे बहुत सी ब्लैक मनी प्राप्त होती है इसके बाद भी वह मुझे मेरे पैसे नहीं दे रहा है, डिक्रिधारी इसके साक्ष्य भी प्रस्तुत करता है न्यायालय में, अब न्यायालय इस बात को मामले में संज्ञान लेगा या नहीं उनके विवेक पर निर्भर करता है इस धारा के अनुसार। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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